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१०-धन स्थान में अनेक पापग्रह हों और धनेश भी पापग्रहों से दृष्ट हो तो तीन विवाह होते हैं। - ११ –सप्तम भाव में बहुत पापग्रह हों तथा सप्तमेश पापग्रहों से युत हो तो तीन विवाह होते हैं। - १२-बली चन्द्र और शुक्र एक साथ हों; बली शुक्र सप्तम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो, लग्नेश उच्च का हो या लग्न भाव में उच्च का ग्रह एवं लग्नेश, द्वितीयेश और षष्ठेश ये तीनों ग्रह पापग्रहों से युक्त होकर सप्तम भाव में स्थित हों तो जातक अनेक स्त्रियों के साथ विहार करनेवाला होता है।
१३-सप्तमेश से तीसरे स्थान में चन्द्रमा, गुरु से दृष्ट हो, या सप्तमेश से तीसरे, सातवें भाव में चन्द्रमा हो, सप्तमेश शनि हो, सप्तमेश और नवमेश बली होकर ५।९वें भाव में स्थित हो एवं दशमेश से दृष्ट सप्तमेश ११४।५।७।९।१०वें भाव में स्थित हो तो जातक अनेक स्त्रीभोगी होता है ।
१४-७वें या १२वें भाव में बुध हो तो वेश्यागामी होता है । स्त्री रोग विचार
१-लग्न स्थान में शनि, मंगल, बुध, केतु इन चारों में से किसी भी ग्रह के रहने से स्त्री रोगिणी रहती है।
२-सप्तमेश ८।१२वें भाव में हो तो भार्या रोगिणी रहती है।
३-सप्तमेश और द्वितीयेश दोनों पापग्रहों से युत होकर २।१२वें भाव में हों तो स्त्री रोगिणी रहती है। विवाह-समय विचार
१-बृहत्पाराशरीकार ने बताया है कि सप्तमेश शुभग्रह की राशि में गया हो और शुक्र अपनी उच्च राशि में हो तो नौ वर्ष की अवस्था में विवाह होता है।
२-शुक्र धन स्थान में और सप्तमेश ग्यारहवें भाव में हो तो १० या १६ वर्ष की आयु में विवाह होता है ।
३-लग्न में शुक्र और लग्नेश १०।११ राशि में हो तो ११ वर्ष की आयु में विवाह होता है।
४-केन्द्र स्थान में शुक्र हो और शुक्र से सातवें शनि हो तो १२ या १९ की अवस्था में विवाह होता है।
५-सातवें स्थान में चन्द्रमा हो और शुक्र से सातवें स्थान में शनि हो तो १८ वर्ष की वायु में विवाह होता है।"
६-द्वितीयेश ११वें और एकादशेश २से भाव में हों तो १३ वर्ष की आयु में, विवाह होता है।
मारतीय गति
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