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________________ १६-सूर्य, मंगल और शुक्र का योग तथा अष्टमेश और लग्नेश का योग जातक को रोगी बनाता है। १७-छठे स्थान पर शनि की पूर्ण दृष्टि हो तो जातक को राजयक्ष्मा होता है। चन्द्र और शनि एक साथ कर्क राशि में स्थित हों या छठे भाव में स्थित होकर बुध से दृष्ट हों तो जातक को कुष्ट रोग होता है । षष्ठेश का द्वादश भावों में फल षष्ठेश लग्न भाव में हो तो जातक नीरोग, कुटुम्ब को कष्ट देनेवाला, शत्रुनाशक, निरुत्साही, निरुद्यमी, चंचल, धनी, अन्तिम अवस्था में आलसी पर मध्यम वय में परिश्रमी और अभिमानी; द्वितीय भाव में हो तो दुष्ट बुद्धिवाला, चालाक, संग्रह करनेवाला, उत्तम स्थानवाला, प्रख्यात रोगी और अस्त-व्यस्त रहनेवाला; तृतीय भाव में हो तो कुटुम्बियों से मनमुटाव रखनेवाला, संग्राहक, द्वेषबुद्धि करनेवाला, स्वार्थी, अभिमानी, नीरोग और चतुर; चौथे भाव में हो तो पिता से द्वेष करनेवाला, नीच बुद्धि, अभिमानी, अभक्ष्य-भक्षक और लालची; पांचवें भाव में हो तो माता का भक्त, शत्रुओं से पीड़ित, साधारण रोगी, बवासीर और मस्तिष्क रोग से पीड़ित; छठे भाव में हो तो नीरोग, कृपण, शत्रुहन्ता, अरिष्टनाशक, सुखी, साधारण धनी तथा क्रूर ग्रहों की दृष्टि हो तो नाना रोगों का शिकार, अभिमानी और कुटुम्बियों को शत्रु समझनेवाला; सातवें भाव में क्रूर ग्रह षष्ठेश हो तो भार्या कुरूपा, लड़ाकू, अभिमानिनी और व्यभिचारिणी होती है तथा शुभग्रह षष्ठेश हो तो सन्तानहीन, रूपवती, गुणवती स्त्री का पति; आठवें भाव में हो तो स्त्री-मृत्यु के साधनों का ग्रहों के स्वरूपानुसार अनुमान करना चाहिए तथा जातक रोगी, अनेक व्याधियों से पीड़ित, दुखी और शत्रुओं के द्वारा कष्ट पानेवाला; नौवें भाव में हो तो नीरोग, सम्माननीय, धर्मात्मा और मित्रों से युक्त; दसवें भाव में हो तो पिता से स्नेह करनेवाला, पिता रोगी रहनेवाला, माता की सेवा करनेवाला, नीरोग, बलवान्, ऐश्वर्यवान् और साहसी, किन्तु षष्ठेश क्रूर ग्रह हो तो इसके विपरीत फल मिलता है; ग्यारहवें भाव में हो तो शत्रुओं से कष्ट, मवेशी के व्यापार से लाभ और नीरोग तथा षष्ठेश क्रूर हो तो रोगी, शत्रुओं से दुखी और अभिमानी एवं बारहवें भाव में हो तो रोगी, दुखी और व्यापार से धनार्जन करनेवाला होता है । सातवें भाव का विचार सप्तम स्थान से विवाह का विचार प्रधानतः किया जाता है। विवाह के प्रतिबन्धक योग निम्न है १-सप्तमेश शुभ युक्त न होकर ६।८।१२ भाव में हो अथवा नीच का या अस्तंगत हो तो विवाह नहीं होता है अथवा विधुर होता है । तुखोवाध्याय २.९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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