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________________ ५।९ राशि में सूर्य के जाने पर पिता की मृत्यु एवं चन्द्र स्थित नवांश और राशि में बली राशि से ५।९ में सूर्य के जाने पर माता की मृत्यु होती है। सूर्य ६।८।१२ में स्थित हो और यह सिंह या मीन के द्वादशांश में हो तो जातक के जन्म के पहले ही पिता की मृत्यु होती है। . स्पष्ट गुलिक में स्पष्ट सूर्य के घटाने से जो शेष हो उस राशि या उसके त्रिकोण में गोचरीय शनि के जाने पर जातक के पिता को रोग होता है। और शेष राशि के नवांश में बृहस्पति के जाने पर उसके पिता की मृत्यु होती है। यदि सूर्य या चन्द्र मेष, कर्क, तुला और मकरराशि के होकर केन्द्र (१।४।७।१० ) में स्थित हो तो पुत्र माता-पिता का दाह संस्कार नहीं करता है । बुद्धि विचार पंचमेश ६।८।१२ में या अदृश्य राशि में हो तो जातक विशेषकर मन्द बुद्धि होता है । यदि पंचमेश बुध और गुरु से युक्त होकर केन्द्र (१।४।७।१०) अथवा त्रिकोण (५।९) में स्थित हो तथा बलवान् हो तो जातक कुशाग्र बुद्धि होता है । ___ यदि बृहस्पति अपने नवांश में अथवा शुभ षष्ठी-अंश में या शुभ ग्रह के नवांश में स्थित होकर शुभग्रह द्वारा दष्ट हो तो जातक त्रिकालज्ञ होता है। बुद्धि का विचार विशेषतः पंचमेश द्वारा करना चाहिए पर इसके साथ चतुर्थेश का सम्बन्ध भी देखना आवश्यक है। यदि चतुर्थेश पंचम भाव में स्थित हो और पंचमेश चतुर्थ भाव में स्थित हो तो जातक तीव्र बुद्धि होता है। वह अपनी प्रतिभा द्वारा नयी-नयी बातों का आविष्कार करता है। पंचमेश का षष्ठ भाव या षष्ठेश के साथ युक्त होना प्रतिभा का घातक है। जिस जातक का चतुर्थेश शुभ ग्रह के नवांश में स्थित रहता है वह जातक मेधावी होता है। यदि पंचमेश नीच और अस्तंगत होता है तो जातक क्रूर कार्य करनेवाला अभिमानी और मूर्ख होता है। पंचमेश गुरु के नवांश में स्थित हो तो जातक प्रतिभाशाली और प्रतिष्ठित होता है। पंचमेश का द्वादश भावों में फल __ पंचमेश लग्न में हो तो जातक प्रसिद्ध पुत्रवाला, शास्त्रज्ञ, संगीत-विशारद, सुकर्मरत, विद्वान्, विचारक और चतुर; द्वितीय भाव में हो तो धनहीन, काव्यकला जाननेवाला, कष्ट से भोजन प्राप्त करनेवाला, आजीविका रहित और चालाक; तृतीय में हो तो मधुर-भाषी, प्रसिद्ध , पुत्रवान्, आश्रयदाता और नीतिज्ञ; चौथे में हो तो गुरुजनभक्त, माता-पिता की सेवा करनेवाला, कुटुम्ब का संवर्धन करनेवाला और सुन्दर सन्तान का पिता; पाँचवें भाव में हो तो श्रेष्ठ, सच्चरित्र पुत्रों का पिता, धनिक, लब्धप्रतिष्ठ, चतुर, विद्वान् और समाजमान्य; छठे भाव में हो तो पुत्रहीन, रोगी, धनहीन, मारतीय ज्योतिष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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