________________
हो तथा पंचमेश ६।८।१२वें भाव में न हो, पापयुक्त, अस्त एवं शत्रु राशिगत न हो तो सन्तान-सुख होता है।
६-पंचम स्थान में वृष, कर्क और तुला में से कोई राशि हो, पंचम में शुक्र या चन्द्रमा स्थित हों अथवा इनकी दृष्टि पंचम पर हो तो बहुपुत्र योग होता है।
७-लग्न या चन्द्रमा से पंचम स्थान में शुभग्रह स्थित हो, पंचम स्थान शुभग्रहों से दृष्ट हो या पंचमेश से दृष्ट हो तो सन्तान योग होता है।
८-लग्नेश, पंचमेश एक साथ हों या परस्पर दृष्ट हों अथवा दोनों स्वगृही, मित्रगृही या उच्च के हों तो सन्तान योग होता है।
९-लग्नेश, पंचमेश शुभग्रह के साथ होकर केन्द्रगत हों और द्वितीयेश बली हो तो सन्तान योग होता है।
१०-लग्नेश और नवमेश दोनों सप्तमस्थ हों अथवा द्वितीयेश लग्नस्थ हो तो सन्तान योग होता है ।
११-पंचमेश के नवांश का स्वामी शुभग्रह से युत और दृष्ट हो तो सन्तान योग होता है। लग्नेश और पंचमेश १।४।७।१० स्थानों में शुभग्रह से युत या दृष्ट हों तो सन्तान योग होता है।
१२-पंचमेश और गुरु बलवान् हों तथा लग्नेश पंचम भाव में हो; सप्तमेश के नवांश का स्वामी, लग्नेश तथा धनेश और नवमेश इन तीनों से दृष्ट हो तो सन्तानप्राप्ति का योग होता है।
१३-पंचम भाव में २।४।६।८।१०।१२ राशियां और इन्हीं राशियों के नवांश शनि, बुध, शुक्र या चन्द्रमा से युत हों तो कन्याएँ अधिक तथा पंचम भाव में १।३।५। ७।९।११ राशियाँ तथा इन राशियों के नवांशाधिपति मंगल, शनि और शुक्र से दृष्ट हों तो पुत्र अधिक होते हैं।
१४-पंचमेश धन में अथवा आठवें भाव में गया हो तो कन्याएँ अधिक होती हैं।
१५-ग्यारहवें भाव में बुध, शुक्र या चन्द्रमा इन तीनों में से एक भी ग्रह गया हो तो कन्याएँ अधिक होती हैं ।
१६-बुध, चन्द्र और शुक्र इन तीनों ग्रहों में से एक भी ग्रह पांचवें भाव में हो तो कन्याएँ अधिक होती हैं।
१७-पंचम भाव में मेष, वृष और कर्क राशि में केतु गया हो तो सन्तान की प्राप्ति होती है। सन्तान प्रतिबन्धक योग
१-तृतीयेश और चन्द्रमा १।४।७।१०।५।९ स्थानों में हों तो सन्तान नहीं होती।
वृतीयाध्याय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org