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व्यसनी; सातवें भाव में क्रूरग्रहं चतुर्थेश हो तो ससुर का विरोधी, ससुराल के सुख से वंचित तथा शुभग्रह चतुर्थेश हो तो ससुराल से धन-मान प्राप्त करनेवाला और स्त्री. सुख से पूर्ण; आठवें भाव में क्रूर स्वभाव का चतुर्थेश हो तो रोगी, दरिद्री, दुष्कर्मकर्ता, अल्पायु, दुखी तथा सौम्य ग्रह हो तो मध्यमायु, सामान्यतः स्वस्थ और उच्च विचार का; नौवें भाव में हो तो विद्वान्, सत्संगति में रहनेवाला, पिता का परम भक्त, धर्मात्मा और तीर्थस्थानों की यात्रा करनेवाला; दसवें स्थान में चतुर्थेश पापग्रह हो तो पिता जातक की माता को त्यागकर अन्य स्त्री से विवाह करनेवाला तथा शुभग्रह हो तो पिता प्रथम स्त्री का बिना त्याग किये अन्य स्त्री से विवाह करनेवाला; ग्यारहवें भाव में हो तो पिता की सेवा करनेवाला; धनी, प्रवासी, लोकमान्य और आनन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करनेवाला एवं बारहवें भाव में हो तो विदेशवासी, माता-पिता का सामान्य सुख पानेवाला और गृह-सुख से वंचित अथवा जीवन में दो-तीन घरों का मालिक होता है। यदि चतुर्थेश क्रूर ग्रह होकर ग्यारहवें और बारहवें भाव में स्थित हो तो जातक जारज-अन्य पिता से उत्पन्न हुआ होता है । बली, सौम्य ग्रह चतुर्थेश चौथे, पांचवें और सातवें भाव में हो तो जातक जीवन में सब प्रकार सुखी होता है। पंचम भाव विचार
. १-पंचम स्थान का स्वामी बुध, शुक्र से युत या दृष्ट हो, २-पंचमेश शुभग्रहों से घिरा हो, ३-बुध उच्च का हो, ४-बुध पंचम स्थान में हो, ५-पंचमेश जिस नवांश में हो उसका स्वामी केन्द्रगत हो और शुभग्रहों से दृष्ट हो तो जातक समझदार, बुद्धिमान और विद्वान् होता है। पंचमेश जिस स्थान में हो उस स्थान के स्वामी पर शुभग्रह की दृष्टि हो अथवा दोनों तरफ़ शुभग्रह बैठे हों तो जातक सूक्ष्म बुद्धिवाला होता है। यदि लग्नेश नीच या पापयुक्त हो तो जातक की बुद्धि अच्छी नहीं होती है। पंचम स्थान में शनि और राहु हों और शुभग्रहों की पंचम पर दृष्टि न हो, पंचमेश पर पापग्रहों की दृष्टि हो और बुध द्वादश स्थान में हो तो जातक की स्मरणशक्ति अच्छी नहीं होती है । पंचमेश शुभ युत या दृष्ट हो अथवा पंचम स्थान शुभ युत या दृष्ट हो और बृहस्पति से पंचम स्थान का स्वामी १।४।५।७।९।१० स्थानों में हो तो स्मरण-शक्ति तीक्ष्ण होती है । गुरु १।४।५।७।९।१० स्थानों में हो, बुध पंचम भाव में हो, पंचमेश बलवान् होकर १।४।५।७।९।१० स्थानों में हो तो जातक बुद्धिमान् होता है। पंचमेश ११४।७।१० स्थानों में हो तो जातक की स्मरण-शक्ति अत्यन्त प्रबल होती है ।
१-दसवें भाव का स्वामी लग्न में या ग्यारहवें भाव का स्वामी ग्यारहवें भाव में हो तो जातक कवि होता है।
२-स्वगृही, बलवान्, मित्रगृही या उच्च राशि का पंचमेश १।४।५।७।९।१० स्थानों में स्थित हो या पंचमेश दसवें अथवा ग्यारहवें भाव में स्थित हो तो संस्कृतज्ञ विद्वान् होता है।
तृतीयाध्याय
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