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बीच जो ग्रह सबसे अधिक अनिष्ट सूचक हो, उसकी महादशा या अन्तर दशा में जातक की माता का मरण होता है।
___ स्पष्ट सूर्य में से स्पष्ट चन्द्रमा को घटाकर जो राशि अंश आदि अवशिष्ट हो उसके राशि अंश में जब बृहस्पति रहता है अथवा शनैश्चर स्थित रहता है तो माता का मरण कहा जाता है। चन्द्रमा के अष्टम राशि के स्वामी में यम कंटक को घटाकर जो शेष बचे, उस राशि में शनि और उस अंश में सूर्य जब प्राप्त हों तब माता की मृत्यु कहनी चाहिए। वाहन विचार
___ चतुर्थेश और चतुर्थ भाव बली हों, शुभग्रह से दृष्ट हों तो वाहन का सुख होता है।
___ सुखेश, सुख में बुध के साथ हो, शुभग्रह उसे देखते हों अथवा शुभग्रह के राशि अथवा अंश में हो तो मोटर की प्राप्ति होती है।
चन्द्रमा लग्न से सम्बन्धित हो, सुखेश से युक्त हो तो उस जातक को घोड़े का सुख प्राप्त होता है।
द्वितीय या चतुर्थ भावगत शुभ राशि में हो, शुभग्रह से युक्त हो तो मोटर की प्राप्ति होती है।
चतुर्थेश चन्द्रमा के साथ लग्न में हो, लग्नेश से युक्त हो, अथवा चतुर्थेश शुक्र से युक्त लग्न में स्थित हो तो श्रेष्ठ वाहन की प्राप्ति होती है।
शुक्र, चन्द्रमा और चतुर्थेश लग्न के साथ हों तो मोटर आदि श्रेष्ठ वाहन उपलब्ध होते हैं। बृहस्पति, सुखेश, चन्द्रमा और शुक्र एकत्र होकर केन्द्र या त्रिकोण में स्थित हों तो श्रेष्ठ वाहन उपलब्ध होता है।
चतुर्थेश केन्द्र में और उस केन्द्र का स्वामी लग्न में हो तो उत्तम वाहन की प्राप्ति होती है। दशमेश एकादश भाव में और लाभेश दशम भाव में स्थित हों तो श्रेष्ठ वस्त्राभूषण और वाहन उपलब्ध होते हैं।
बुध अपनी उच्च राशि में स्थित होकर केन्द्र या त्रिकोण में विद्यमान हो तो विद्या, वाहन, सम्पत्ति और विपुल धन उपलब्ध होता है ।
चतुर्थेश शत्रुस्थान या नीच स्थान में होकर पाप भाव में स्थित हो और उसको नवमेश देखता हो तो सामान्य वाहन उपलब्ध होता है। नवम, दशम और लग्न में स्थित उच्चगत शुभग्रह लग्नेश से दृष्ट हो तो वाहन-सुख माना जाता है। यदि गुरु या चतुर्थेश दुष्ट स्थान पापयुक्त ग्रह अस्त या नीचगृह में हो तो वाहन का योग नहीं होता है।
यदि चतुर्थेश और दशमेश बलवान् होकर लाभ भाव में स्थित हों या चतुर्थ स्थान को देखते हों तो उत्तम वाहन की उपलब्धि होती है । तृतीयाध्याय
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