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मरुत् योग
___यदि शुक्र से त्रिकोण में गुरु हो, गुरु से पंचम चन्द्रमा और चन्द्रमा से केन्द्र में सूर्य हो तो मरुत् योग होता है। इस योग में जन्म लेनेवाला मनुष्य वाचाल, विशाल हृदय, स्थूल उदर, शास्त्र का ज्ञाता, क्रय-विक्रय में निपुण, तेजस्वी, विधायक या किसी आयोग का सदस्य होता है । यथा
स.२Xच.
Kसू. ४
बुध योग
यदि लग्न में गुरु से केन्द्र में चन्द्रमा, चन्द्रमा से द्वितीय में राह, तृतीय स्थान में सूर्य एवं मंगल हो तो बुध योग होता है। इस योग में उत्पन्न होनेवाला मनुष्य राजश्री से युक्त, विशेष बली, यशस्वी, शास्त्रज्ञाता, व्यापार में चतुर, बुद्धिमान और शत्रु रहित होता है। इस योग का फलादेश २८ वर्ष की अवस्था से प्राप्त होता है । यथा--
रा.
द्वादश भावों में लग्नेश का फल
लग्नेश लग्न में हो तो जातक नीरोग, दीर्घायु, बलवान्, ज़मींदार, कृषक और परिश्रमी; द्वितीय में हो तो धनवान्, लब्धप्रतिष्ठ, दीर्घजीवी, स्थूल, सत्कर्मनिरत, नायक, नेता और कृतज्ञ; तृतीय में हो तो सद्बन्धुयुत, उत्तम मित्रवान्, धार्मिक, दानी, शूर, बलवान्, समाज में आदर पानेवाला और साहसी; चौथे भाव में हो तो राजप्रिय, दीर्घजीवी, माता-पिता की भक्ति करनेवाला, अल्पभोजी, पिता से धन पानेवाला,
तृतीयाध्याय
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