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सब ग्रह बली होकर अपने-अपने उच्च में स्थित हों और अपने मित्र से दृष्ट हों तथा उनपर शत्रु की दृष्टि न हो तो जातक अत्यन्त प्रभावशाली मन्त्री होता है। चन्द्रमा परमोच्च में स्थित हो और उसपर शुक्र की दृष्टि हो तो जातक निर्वाचन में सर्वदा सफल होता है। इस योग के होने पर पापग्रहों का आपोक्लिम स्थान में रहना आवश्यक है।
जन्मलग्नेश और जन्मराशीश दोनों केन्द्र में हों तथा शुभग्रह और मित्र से दृष्ट हों; शत्रु और पापग्रहों की दृष्टि न हो तथा जन्मराशीश से नवम स्थान में चन्द्रमा स्थित हो तो राजयोग होता है। इस योग में जन्म लेनेवाला व्यक्ति एम. एल. ए. या एम. पी. बनता है।
यदि पूर्ण चन्द्रमा जलचर राशि के नवांश में चतुर्थ भाव में स्थित हो और शुभग्रह अपनी राशि के लग्न में हों तथा केन्द्र स्थानों में पापग्रह न हों तो जातक शासनाधिकारी होता है। इस योग में जन्म ग्रहण करनेवाला व्यक्ति गुप्तचर या राजदूत के पद पर प्रतिष्ठित होता है।
बुध अपने उच्च में स्थित होकर लग्न में हो और मीन राशि में गुरु एवं चन्द्रमा स्थित हों तथा मंगलसहित शनि मकर में हो और मिथुन में शुक्र हो तो जातक शासन के प्रबन्ध में भाग लेता है। उक्त योग के होने से निर्वाचन कार्य में सर्वदा सफलता प्राप्त होती है। उक्त योग पचास वर्ष की अवस्था में ही अपना यथार्थ फल देता है।
___ मेष लग्न हो, सिंह में सूर्य सहित गुरु, कुम्भ में शनि, वृष में चन्द्रमा, वृश्चिक में मंगल एवं मिथुन में बुध स्थित हो तो राजयोग बनता है। इस प्रकार के योग के होने से व्यक्ति किसी आयोग का अध्यक्ष होता है ।
गुरु, बुध और शुक्र ये तीनों शनि, रवि और मंगलसहित अपने-अपने स्थान या केन्द्र में हों और चन्द्रमा स्वोच्च में स्थित हो तो जातक इंजीनियर या इसी प्रकार १. अत्युच्चस्था रुचिरवपुषः सर्व एव ग्रहेन्द्रा मित्रदृष्टा यदि रिपुदृशां गोचरं न प्रयाताः । कुर्युनूनं प्रसभमरिभिर्गजितैरिणाग्र्यैः
सेनास्वीयैश्चलति चलितर्यस्य भूः पार्थिवेन्द्रम् ॥-सारावली, राज., श्लो. ३२ २. उदकचरनवांशके सुखस्थः कमलरिपुः सकलाभिराममूर्तिः ।
उदयति विहगे शुभे स्वलग्ने भवति नृपो यदि केन्द्रगा न पापा: ॥-सारावली, राज., श्लो. २६ ३. बुधः स्वोच्चे लग्ने तिमियुगलगावीड्यशशिनौ,
मगे मन्दः सारो जितुमगृहगो दानवसुहृत् । य एवं कुर्यात्स क्षितिभृदहितध्वंसनिरतो, निरालोकं लोकं चलितगजसंघातरजसा ॥
-वही, श्लो. २३ ४. कार्मुके त्रिदशनायकमन्त्री भानुजो वणिजि चन्द्रसमेतः। मेषगस्तु तपनो यदि लग्ने भूपतिर्भवति सोऽतुलकीर्तिः ।।
-वही, श्लो. २४ २९०
भारतीय ज्योतिष
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