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________________ १६-पापग्रह छठे, आठवें स्थान में स्थित हों और अस्त पापग्रहों की दृष्टि भी हो तो एक वर्ष का अरिष्ट होता है। . १७-चन्द्र, बुध दोनों केन्द्र में स्थित हों और अस्त शनि या मंगल उनको देखते हों तो एक वर्ष के भीतर मृत्यु होती है । १८-शनि, रवि और मंगल छठे, आठवें भाव में गये हों तो जातक को एक वर्ष तक अरिष्ट होता है। १९-अष्टमेश लग्न में और लग्नेश अष्टम भाव में गया हो तो पाँच वर्ष तक अरिष्ट होता है। २०-कर्क या सिंह राशि का शुक्र ६।८।१२ में स्थित हो तथा पापग्रहों से देखा जाता हो तो छठे वर्ष में मृत्यु जानना । २१-लग्न में सूर्य, शनि और मंगल स्थित हों और क्षीण चन्द्रमा सातवें भाव में हो तो सातवें वर्ष में मृत्यु होती है। २२–सूर्य, चन्द्र और शनि इन तीनों ग्रहों का योग ६।८।१२ स्थानों में हो तो ९ वर्ष तक जातक को अरिष्ट रहता है । -२३-चन्द्रमा सातवें भाव में और अष्टमेश लग्न में स्थित हों तो ९ वर्ष तक अरिष्ट रहता है। परन्तु इस योग में शनि की दृष्टि अष्टमेश पर आवश्यक है। २४-चन्द्रमा और लग्नेश ६।७।८।१२ स्थानों में स्थित हों तो १२ वर्ष तक अरिष्ट रहता है। २५–चन्द्र और लग्नेश शनि एवं सूर्य से युत हों तो १२ वर्ष तक अरिष्ट रहता है। गण्ड-अरिष्ट आश्लेषा के अन्त और मघा के आदि के दोषयुक्त काल को रात्रिगण्ड, ज्येष्ठा और मूल के दोषयुक्त काल को दिवागण्ड एवं रेवती और अश्विनी के दोषयुक्त काल को सन्ध्यागण्ड कहते हैं। अभिप्राय यह है कि आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्र की अन्तिम चार घटियाँ तथा मघा, मूल और अश्विनी नक्षत्र के आदि की चार घटियाँ गण्डदोषयुक्त मानी गयी हैं। इस समय में उत्पन्न होनेवाले बालकों को अरिष्ट होता है। मतान्तर से ज्येष्ठा के अन्त की एक घटी और मूल के आदि की दो घटी को अभुक्त मूल कहा गया है। इन तीन घटियों के भीतर जन्म लेनेवाले बालक को विशेष अरिष्ट होता है। यहाँ स्मरण रखने की बात यह है कि बालक का प्रातःकाल अथवा सन्ध्या के सन्धि समय में जन्म हो तो सान्ध्यगण्ड विशेष कष्टदायक; रात्रि-काल में जन्म हो तो रात्रिगण्डदोष विशेष कष्टदायक एवं दिन में जन्म होने पर दिवागण्ड कष्टकारक होता है । सान्ध्यगण्ड बालक के लिए, रात्रिगण्ड माता के लिए और दिवागण्ड पिता के लिए कष्टदायक होता है । तृतीयाध्याय २८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only "www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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