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________________ तो सभापण्डित, अतिकामी, सुखी, भोगी, रोगी, वीर्यहीन, सट्टै द्वारा धननाशक; तुला में हो तो प्रवासी, यशस्वी, कार्यदक्ष, विलासी, कलानिपुण; वृश्चिक में हो तो कुकर्मी, नास्तिक, क्रोधी, ऋणी, दरिद्री, गुह्य रोगी, स्त्रीद्वेषी; धनु में हो तो स्वोपार्जित द्रव्य द्वारा पुण्य करनेवाला, विद्वान्, सुन्दर, लोकमान्य, राजमान्य, सुखी; मकर में हो तो बलहीन, कृपण, हृदय रोगी, दुखी, मानी; कुम्भ में हो तो चिन्ताशील, रोग से सन्तप्त, धर्महीन, परस्त्रीरत, मलीन एवं मीन राशि में हो तो शिल्पज्ञ, शान्त, धनी, कार्यदक्ष, कृषि कर्म का मर्मज्ञ या ज़मींदार और जौहरी जातक होता है । शनि --- मेष राशि में शनि हो तो आत्मबलहीन, व्यसनी, निर्धन, दुराचारी, लम्पट, कृतघ्न; वृष में हो तो असत्यभाषी, द्रव्यहीन, मूर्ख, वचनहीन; मिथुन में हो तो कपटी, दुराचारी, पाखण्डी, निर्धनी, कामी; कर्क में हो तो बाल्यावस्था में दुखी, मातृरहित, प्राज्ञ, उन्नतिशील, विद्वान्; सिंह में हो तो लेखक, अध्यापक, कार्यदक्ष; कन्या में हो तो बलवान्, मितभाषी, धनवान्, सम्पादक, लेखक, परोपकारी, निश्चित कार्यकर्ता; तुला में हो तो सुभाषी, नेता, यशस्वी, स्वाभिमानी, उन्नतिशील; वृश्चिक में हो तो स्त्रीहीन, क्रोधी, कठोर, हिंसक, लोभी; धनु में हो तो व्यवहारज्ञ, पुत्र की कीर्ति से प्रसिद्ध, सदाचारी, वृद्धावस्था में सुखी; मकर में हो तो मिथ्याभाषी, आस्तिक, परिश्रमी, भोगी, शिल्पकार, प्रवासी; कुम्भ में हो तो व्यसनी, नास्तिक, परिश्रमी एवं मीन में हो तो हतोत्साही, अविचारी, शिल्पकार जातक होता है । राहु- मेष में राहु हो तो जातक पराक्रमहीन, आलसी, अविवेकी; वृष में हो तो सुखी, चंचल, कुरूप; मिथुन में हो तो योगाभ्यासी, गवैया, बलवान्, दीर्घायु; कर्क में हो तो उदार, रोगी, धनहीन, कपटी, पराजित; सिंह में हो तो चतुर, नीतिज्ञ, सत्पुरुष, विचारक; कन्या में हो तो लोकप्रिय, मधुरभाषी, कवि, लेखक, गवैया; तुला में हो तो अल्पायु, दन्तरोगी, मृतधनाधिकारी, कार्यकुशल; वृश्चिक में हो तो धूर्त, निर्धन, रोगी, धन-नाशक; धनु में राहु हो तो अल्पावस्था में सुखी, दत्तक जानेवाला, मित्र- द्रोही; कुम्भ में राहु हो तो मितव्ययी, कुटुम्बहीन, दाँत का रोगी, विद्वान्, लेखक, मितभाषी एवं मीन में राहु हो तो आस्तिक, कुलीन, शान्त, कला-प्रिय और दक्ष होता है । केतु - मेष राशि में केतु हो तो चंचल, बहुभाषी, सुखी; वृष में हो तो दुखी, निरुद्यमी, आलसी, वाचाल; मिथुन में हो तो वातविकारी, अल्प सन्तोषी, दाम्भिक, अल्पायु, क्रोधी; कर्क में हो तो वातविकारी, भूत-प्रेत पीड़ित, दुखी; सिंह में हो तो बहुभाषी, डरपोक, असहिष्णु, सर्प दंशन का भय, कलाविज्ञ; कन्या में हो तो सदा रोगी, मूर्ख, मन्दाग्निरोगी, व्यर्थवादी; तुला में हो तो कुष्ठरोगी, कामी, क्रोधी, दुखी; वृश्चिक में हो तो क्रोधी, कुष्ठरोगी, धूर्त, वाचाल, निर्धन, व्यसनी; धनु में हो तो मिथ्यावादी, चंचल, धूर्त; मकर में हो तो प्रवासी, परिश्रमशील, तेजस्वी, पराक्रमी; कुम्भ में हो तो कर्णरोगी, दुखी, भ्रमणशील, व्ययशील, साधारण धनी एवं मीन में केतु हो तो कर्णरोगी, प्रवासी, चंचल और कार्यपरायण जातक होता है । २६० Jain Education International For Private & Personal Use Only भारतीय ज्योतिष www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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