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प्रस्तुत मंगल का शीघ्रोच्च १२॥२४॥५३।४७ जो कि मध्यम सूर्य है, माना जायेगा।
३।८।०।२४ मध्यम मंगल २।२११५२।४४ स्पष्ट करते मंगल ग्रहस्पष्ट साधन समय आया है। ५।२९।५३।८ योग २।२९।५६।३४ योगाई ११।२४।५३६४७ मंगल के शीघ्रोच्च में से २।२९।५६।३४ योगा को घटाया ९। ४।५७।१३ मंगल का चेष्टा केन्द्र हुआ । यह छह राशि से अधिक है । अतः १२ में से घटाया तो१२। ० ० ०
९। ४।५७११३ २।२५।२।४७४२५।२५।५।४४:६ =
५-३० = १५०+२०=१७०।५।३४६ = २८०२० यह मंगल का मध्यम चेष्टाबल हुआ। इसमें मंगल का अयनबल जोड़ देने से स्पष्ट चेष्टाबल आ जायेगा।
नैसर्गिक-बल-साधन-एकोत्तर अंकों में पृथक्-पृथक् ७ का भाग देने से क्रमशः शनि, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, चन्द्र और सूर्य का नैसर्गिक बल होता है-एक में ७ का भाग देने से शनि का, दो में ७ का भाग देने से मंगल का, तीन में ७ का भाग देने से बुध का, चार में ७ का भाग देने से गुरु का, पाँच में ७ का भाग देने से शुक्र का, छह में ७ का भाग देने से सूर्य का नैसर्गिक बल होता है।
उदाहरण-१७= •, शेष १x६० = ६०८७, शेष ४४ ६० = २४० : ७ = ३४ शनि का नैसर्गिक बल हुआ। इसी प्रकार सभी ग्रहों का बल बना लेना चाहिए।
नैसगिक बल चक्र
| सू. चं. भौ. । बु. गु. । शु. । श. | ग्रह |
। ० ० अंश J१७ / २५ । ३४ / ४२ / ८ कला
। ४३ । १७ । ५१ । ३४ विकला दृग्बल-देखनेवाला ग्रह द्रष्टा और जिसे देखे वह ग्रह दृश्यसंज्ञक होता है । द्रष्टा को दृश्य में घटाकर एकादि शेष के अनुसार दृष्टि ध्रुवांश चक्र में से राशि का
द्वितीयाध्याय
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