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१८६६ + ३१७९ = ५०४५ कलियुगादि गतवर्ष
५०४५ × १२ = ६०५४० + १ = ६०५४१ गतमास ६०५४१ ÷ ७० = ८६४ शेष ६१
६०५४१
८६४
= १८६०
शेष २५
६२४०१ × ३० = १८७२०३० + १६ ( तिथि शुक्ल प्रतिपदा से जोड़ना चाहिए ) १८७२०४६ × ११ = २०५९२५०६
१८७२०४६
२०५९२५०६ ÷ ७०३ =
२९२९२
२९२९२, शेष २४०
१८४२७५४
१८४२७५४ - ३७३ १८४२३८१ ÷ २५२० = ७३१; शेष २६१, यहाँ लब्धि का उपयोग न होने से शेष को दो स्थानों में स्थापित किया ।
२६१ : ३६० = ० शेष = २६१
२६१ ÷ ३० = ८, शेष २१ मासेश ८x२ = १६+१ = १७ १७ ÷ ७ = २, शेष ३
=
किया ।
द्वितीयाध्याय
६१४०५
÷ ३३
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१
वर्षेश = ०x३ = ०+१=१÷ ७०, शेष दिनेश साधन - जिस दिन का इष्ट काल हो, उदाहरण में सोमवार का इष्टकाल है, अतः दिनेश चन्द्रमा होगा ।
कालहोरेश साधन - सूर्य दक्षिण गोल में हो तो इष्टकाल में चर घटी को जोड़ना और उत्तर गोल में हो तो इष्टकाल में से चर घटी को घटाना चाहिए। इस काल में पूर्व देशान्तर को ऋण और पश्चिम देशान्तर को धन करने से वारप्रवृत्ति के समय इष्टकाल होता है । इस इष्टकाल को दो से गुणा कर ५ का भाग देने पर जो शेष रहे उसे गुणनफल में से घटाना चाहिए । अब शेष में एक जोड़कर ७ का भाग देने से जो शेष आवे उसे दिनपति से आगे गणना करने पर कालहोरेश आता है । उदाहरण - इष्टकाल २३।२२, चर मिनटादि २५।१७ - यह पहले निकाला गया है । इसमें घट्यादि - २५६ = २५ + ू ँ १६०७ × २४ = १४४० = १q¥¥= = = = = ६५४ अर्थात् एक घटी ३ पल चर काल हुआ । यहाँ सूर्य मेष राशि का होने के कारण दक्षिण गोल का है अतः उपर्युक्त नियमानुसार इष्टकाल
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२३ । २२ में देशान्तर ८ मिनट ४० से. के घटी
चर घटी १ । ३ को इष्टकाल २३।२२ में जोड़ा देशान्तर २४/२५
पल बनाये तो
६०५४१ + १८६० = ६२४०१
{
२१ पल हुए
०।२१, आरा रेखादेश से पश्चिम होने के कारण देशान्तर घटी का धन संस्कार
वही दिनेश होता है । प्रस्तुत
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