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________________ लग्न से दशम भाव साधन-लग्न के राशि अंशों द्वारा फल लेकर-लग्न राशि के सामने और अंश के नीचे जो अंकसंख्या 'लग्न से दशम भाव साधनसारणो' में मिले वही दशम भाव होगा। उदाहरण १-पश्चिमनतकाल ७१९, सूर्य ०।१० इस सूर्य के राशि, अंशों को दशमसारणी में देखा तो शून्य राशि और दश अंश के सामने का फल ५१७५१ मिला। पश्चिमनत होने के कारण इसे इष्टकाल स्वरूप नत में जोड़ा-५।७१५१ आगत फल ७।१९।० नत-इष्टकाल १२।२६।५१ इसे पुनः दशमसारणी में देखा तो इस संख्या के लगभग १ राशि २३ अंश का फल मिला, अतः दशम भाव ११२३ हुआ। उदाहरण २-इष्टकाल १०।१५, दिनमान ३२।६, दिनार्ध १६।३, सूर्य ०११० है। यहाँ इष्टकाल में से दिनार्ध घटाना है, लेकिन इष्टकाल कम होने के कारण दिनार्ध घटता नहीं है, अतः ६० जोड़कर घटाया-६० + ( १०।१५) ७०।१५ योगफल में से १६। ३ दिनार्ध घटाया ५४.१२ दशम साधन का इष्टकाल । पूर्ववत् सूर्य के राश्यादि को दशमसारणी में देखा तो फल ५१७१५१ मिला । ५।७।५१ आगतफल में .. ५४।१२। ० इष्टकाल को जोड़ा ५९।१९१५१ इसे दशमसारणी में देखा तो १०२ आया, यही दशम भाव हुआ। उदाहरण ३-लग्नमान ४।२३।२५।२७ है । इसके राशि अंशों को 'लग्न से दशम भाव साधनसारणी' में देखा तो ४ राशि के सामने और २३ अंश के नीचे १।२२।३०।१५ फल प्राप्त हुआ, यही दशम भाव हुआ। अन्य भाव साधन करने की प्रक्रिया दशम भाव की राशि में छह जोड़ने से चतुर्थ भाव आता है। चतुर्थ भाव में से लग्न को घटाने से जो आये उसमें छह का भाग देकर लब्ध को लग्न में जोड़ने से लग्न को सन्धि; लग्न की सन्धि में इस षष्ठांश को जोड़ने से द्वितीय भाव; द्वितीय भाव में इस षष्ठांश को जोड़ने से धनभाव की सन्धि; इस सन्धि में षष्ठांश को जोड़ने से तृतीय-सहजभाव; सहजभाव में षष्ठांश जोड़ने से तृतीय भाव की सन्धि और इस सन्धि में षष्ठांश जोड़ने से चतुर्थभाव होता है । ३० अंश में से इस षष्ठांश को घटाकर शेष को चतुर्थ भाव-सुहृद्भाव में जोड़ने से चतुर्थ की सन्धि; इस सन्धि में उसी शेष को जोड़ने से पंचम भाव-पुत्रभाव; मारतीय ज्योतिष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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