________________
भुक्तांश साधन द्वारा दशम का उदाहरण
सायन सूर्य १३५३ ३४, पूर्वनत १७।९ है । सायन सूर्य वृष राशि का होने से भुक्तांशों को वृष के लंकोदय मान से गुणा किया — भुक्तांश ३।५३।३४ × २९९ = ३८।२३।६।३६ भुक्त पल हुआ १७।९ नतकाल के पल बनाये; १७ x ६० + ९ = १०२९ नतपल
१०२९ नतकाल के पलों में
{
२७८० मेष का मान घटाया
समय उलटा राशिमान घटाया जाता है ।
७१२/०
२७८।० मीन का मान घटाया
४३४।३७
२९९ • कुम्भ का मान घटाया
१३५।३७ इसमें से मकर का राशिमान नहीं घटा है, अतः मकर अशुद्ध हुई । १३५।३७ × ३० = ४०६८।३० इसमें अशुद्ध राशिमान का भाग दिया-४०६८।३० : ३२३ = १२।३५।३९ अंशादि; इसमें शुद्ध राशियाँ जहाँ तक घट सकती हैं, उस राशिपर्यन्त संख्या को इस पल में जोड़ा-
१२।३५।३९
११। ० । ० । ०
११।१२।३५।३९ सायन दशम में से
०।२३।४६ | ० अयनांश घटाया १०।१८।४९ ३९
दशम भाव साधन करने के अन्य नियम
१ - नतकाल को इष्टकाल मानकर जिस दिन का दशम भाव साधन करना देखकर लिख लेने चाहिए । आगे दी और अंश का कोष्ठक ऊपरी भाग में
हो, उस दिन के सूर्य के राशि, अंश पंचांग में गयी दशमसारणी में राशि का कोष्ठक बायीं ओर है । सूर्य के जो राशि अंश लिखे हैं उनका फल दशमसारणी में – सूर्य की राशि के सामने और अंश के नीचे जो अंक संख्या मिले, उसे पश्चिमनत हो तो नतरूप इष्टकाल में जोड़ देने से और पूर्वनत हो तो सारणी के अंकों में घटा देने से जो अंक आवें उनको पुनः दशमसारणी में देखें तो बायीं ओर राशि और ऊपर अंश मिलेंगे । ये राशि, अंश ही दशम के राश्यादि होंगे । कला, विकला फल त्रैराशि द्वारा निकलता है ।
२ - इष्टकाल में से दिनार्ध घटाकर जो आये वह दशम भाव का इष्ट होगा । यदि इष्टकाल में से दिनार्ध न घट सके तो इष्टकाल में ६० घटी जोड़कर दिनार्ध घटाने से दशम का इष्टकाल होता है । इष्टकाल पर से प्रथम नियम के अनुसार दशमसारणी द्वारा दशमसाधन करना चाहिए ।
३ – लग्नसारणी द्वारा लग्न बनाते समय घट्यादि अंश आये, उसमें १५ घटी घटाने से अंश का फल हो, वही दशम लग्न होगा ।
द्वितीयाध्याय
Jain Education International
सूर्यफल में इष्टकाल जोड़ने से जो शेष अंक दशमसारणी में जिस राशि,
For Private & Personal Use Only
१७३
www.jainelibrary.org