SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अन्तर कर दैनिक गति से गुणा कर ६० का भाग देने से जो अंश, कला, विकलारूप फल आये उसे मिश्रमानकालिक या प्रातःकालिक ग्रहस्पष्ट पंक्ति में ऋण, धन करने पर इष्टकालिक ग्रहस्पष्ट आ जाते हैं। परन्तु जिस पंचांग में साप्ताहिक, ग्रहस्पष्ट पंक्ति दी हो उसके अनुसार यदि अपने इष्ट समय से पंक्ति आगे की हो तो पंक्ति के वार, घटी, पलों में से इष्टकाल के वार, घटी, पल घटाने से शेष तुल्य ऋण-चालन होता है। यदि पंक्ति पीछे की हो और इष्टकाल आगे का हो तो इष्ट-काल के वार, घटी, पलों में से पंक्ति के वार, घटी, पलों को घटाने पर धनचालन होता है। इस ऋण या धनचालन को पंचांग में दी गयी ग्रहगति से गुणा करने पर जो अंशादि आयें उन्हें धन या ऋणचालन के अनुसार पंचांगस्थित ग्रहमान में जोड़ने या घटाने से स्पष्ट ग्रह आते हैं। वक्रीग्रह, राहु एवं केतु के लिए सर्वदा ऋणचालन में आगत अंशादि फल को जोड़ने और धनचालन में आगत अंशादि फल को घटाने से स्पष्टमान होता है । उदाहरण—वि. सं. २००१ वैशाख शुक्ला २ सोमवार को २३।२२ इष्टकाल के ग्रह स्पष्ट करने हैं। पंचांग में वैशाख शुक्ला पंचमी शुक्रवार के ५।५१ इष्टकाल की ग्रहस्पष्ट पंक्ति लिखी है। यहाँ इष्टकाल सोमवार का है और ग्रहपंक्ति शुक्रवार की है; अतः इष्टकाल से ग्रहपंक्ति आगे की हुई तथा ग्रहपंक्ति में से इष्टकाल को घटाना है, इसलिए यहाँ ऋणसंस्कार हुआ ५।५।५१ पंक्ति के वारादि, २।२३।२२ इष्टकाल के वारादि । प्रहपंक्ति वै. शु. ५ शुक्रवार इष्टकाल ५५१ सूर्य | मंगल बुध गुरु शुक्र | शनि | राहु | केतु ग्रह राशि अंश २७ कला विकला | कला विकला गति m ३८ २ १२ ४ ११ । ११. १. दो दिन के स्पष्ट ग्रहों का अन्तर करने पर दैनिक गति आती है। २. वार गणना रविवार से ली गयी है । अर्थात् रविवार की १ संख्या, सोमवार को २, मंगल की ३ इत्यादि। १११ भारतीय ज्योतिष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy