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________________ अक्षरानुसार राशिज्ञान १ मेष = चू चे चो ला ली लू ले लो आ २ वृष = ई उ ए ओ वा वी वू वे वो ३ मिथुन = का की कू घ ङ छ के को हा ४ कर्क = ही हू हे हो डा डी डू डे डो ५ सिंह = मा मी मू मे मो टा टी टूटे ६ कन्या = टो पा पी पू ष ण ठ पे पो ७ तुला = रा री रू रे रो ता ती तू ते ८ वृश्चिक = तो ना नी नू ने नो या यी यू ९ धनु = ये यो भा भी भू धा फा ढा भे १० मकर = भो जा जी खी खू खे खो गा गी ११ कुम्भ = गू गे गो सा सी सू से सो दा। १२ मीन = दी दू थ झ ञ दे दो चा ची आ ला उवा का छा डा हा मा टा पाठा FFME {राशिशान करने की संक्षिप्त अक्षरविधि यह है } नो या भ घाफा ढा खा जा गो सा दाचा राशियों का परिचय आकाश में स्थित भचक्र के ३६० अंश अथवा १०८ भाग होते हैं। समस्त भचक्र १२ राशियों में विभक्त है, अतः ३० अंश अथवा ९ भाग की एक राशि होती है। मेष-पुरुष जाति, चरसंज्ञक, अग्नितत्त्व, पूर्व दिशा की मालिक, मस्तक का बोध करानेवाली, पृष्ठोदय, उग्र प्रकृति, लाल-पीले वर्णवाली, कान्तिहीन, क्षत्रियवर्ण, सभी समान अंगवाली और अल्प सन्तति है । यह पित्त प्रकृतिकारक है, इसका प्राकृतिक स्वभाव साहसी, अभिमानी और मित्रों पर कृपा रखनेवाला है। वृष-स्त्री राशि, स्थिरसंज्ञक, भूमितत्त्व, शीतल स्वभाव, कान्ति रहित, दक्षिण दिशा की स्वामिनी, वातप्रकृति, रात्रिबली, चार चरणवाली, श्वेत वर्ण, महाशब्दकारी, विषमोदयी, मध्यम सन्तति, शुभकारक, वैश्यवर्ण और शिथिल शरीर है। यह अर्द्धजल राशि कहलाती है। इसका प्राकृतिक स्वभाव स्वार्थी, समझ-बूझकर काम करनेवाली और सांसारिक कार्यों में दक्ष होती है। इससे कण्ठ, मुख और कपोलों का विचार किया जाता है। मिथुन-पश्चिम दिशा की स्वामिनी, वायुतत्व, तोते के समान हरित वर्णवाली, पुरुष राशि, द्विस्वभाव, विषमोदयी, उष्ण, शूद्रवर्ण, महाशब्दकारी, चिकनी, दिनबली, मध्यम सन्तति और शिथिल शरीर है। इसका प्राकृतिक स्वभाव विद्याध्ययनी और शिल्पी है। इससे हाथ, शरीर के कन्धों और बाहुओं का विचार किया जाता है। द्वितीयाध्याय १२५ १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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