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________________ मुहर्तयों तो उदयकाल में ही मुहूर्त-सम्बन्धी साहित्य का निर्माण होने लग गया था तथा आदिकाल और पूर्वमध्यकाल में संहिताशास्त्र के अन्तर्गत ही इस विषय की रचनाएँ हुई थीं, पर उत्तरमध्यकाल में इस अंग पर स्वतन्त्र रचनाएँ दर्जनों की संख्या में हुई हैं । शक संवत् १४२० में नन्दिग्रामवासी केशवाचार्य कृत मुहूर्ततत्त्व, शक संवत् १४१३ में नारायण कृत मुहूर्त-मार्तण्ड, शक संवत् १५२२ में रामभट्ट कृत मुहूर्तचिन्तामणि, शक संवत् १५४९ में विट्ठल दीक्षित कृत मुहूर्तकल्पद्रुम आदि मुहूर्त-सम्बन्धी रचनाएँ हुई हैं । इस युग में मानव के सभी आवश्यक कार्यों के लिए शुभाशुभ समय का विचार किया गया है। शकुनशास्त्र-इसका विकास भी स्वतन्त्र रूप से इस युग में अधिक हुआ है। वि. सं. १२३२ में अह्निलपट्टण के नरपति नामक कवि ने नरपतिजयचर्या नामक एक शुभाशुभ फल का बोध करानेवाला अपूर्व ग्रन्थ रचा है। इस ग्रन्थ में प्रधानरूप से स्वर-विज्ञान द्वारा शुभाशुभ फल का निरूपण किया गया है। वसन्तराज नामक कवि ने अपने नाम पर वसन्तराज शकुन नाम का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ रचा है। इस ग्रन्थ में प्रत्येक कार्य के पूर्ण होनेवाले शुभाशुभ शकुनों का प्रतिपादन आकर्षक ढंग से किया गया है। इन ग्रन्थों के अतिरिक्त मिथिला के महाराज लक्ष्मणसेन के पुत्र बल्लालसेन ने श. सं. १०९२ में अद्भुतसागर नाम का एक संग्रह ग्रन्थ रचा है, जिसमें अपने समय के पूर्ववर्ती ज्योतिर्विदों की संहिता-सम्बन्धी रचनाओं का संग्रह किया है। कई जैन मुनियों ने शकुन के ऊपर बृहद् परिमाण में रचनाएँ लिखी हैं । यद्यपि शकुनशास्त्र के मूलतत्त्व आदिकाल के ही थे, पर इस युग में उन्हीं तत्वों की विस्तृत विवेचनाएँ लिखी गयी हैं। उत्तरमध्यकाल में भारतीय ज्योतिष ने अनेक उत्थानों और पतनों को देखा है। विदेशियों के सम्पर्क से होनेवाले संशोधनों को अपने में पचाया है और प्राचीन भारतीय ज्योतिष की गणित-विषयक स्थूलताओं को दूर कर सूक्ष्मता का प्रचार किया है। यदि संक्षेप में उत्तरमध्यकाल के ज्योतिष-साहित्य पर दृष्टिपात किया जाये तो यही कहा जा सकता है कि इस काल में गणित-ज्योतिष की अपेक्षा फलित-ज्योतिष का साहित्य अधिक फला-फूला है । गणित-ज्योतिष में भास्कर के समान अन्य दूसरा विद्वान् नहीं हुआ, जिससे विपुल परिमाण में इस विषय की सुन्दर रचनाएँ नहीं हो सकी। उत्तरमध्यकाल के ग्रन्थ और ग्रन्थकारों का परिचय सिद्धान्त ज्योतिष का विकास इस काल में विशेष रूप से हुआ है । यद्यपि देश की राजनीतिक परिस्थिति साहित्य के सृजन के लिए पूर्वमध्यकाल के समान अनुकूल नहीं थी, फिर भी भास्कर आदि ने गणित-साहित्य के निर्माण में अपूर्व कौशल दिखाया है । यहाँ इस युग के प्रमुख ज्योतिर्विदों का परिचय दिया जाता है प्रथमाध्याय ९७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002676
Book TitleBharatiya Jyotish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Jyotish
File Size22 MB
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