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दिव्य जीवन
श्री स० का० पाटिल : “भारतमें दो वल्लभ हो गये हैं-एकने धर्मक्षेत्रको केन्द्रमें रखकर कार्य किया और दूसरेने राजनीतिक क्षेत्रको।"
रावबहादुर जीवतलाल प्रतापसी : “पूज्य गुरुदेवने बालअवस्थामें दीक्षा लेकर ६८ वर्ष तक संयम पाल कर त्याग एवं सेवाधर्मको सुन्दर रीतिसे अपनाया।"
विश्वधर्मके प्रेरक मुनि श्री सुशीलकुमारजी : “इस शताब्दीकी संतपरम्परामें युगपुरुष तथा असाधारण सर्वोत्तमसेवी संत थे। एकता, समाजसंगठन, मध्यमवर्गकी स्थितिसुधार आदि पवित्र कार्य ही उनके जीवनके उद्देश्य थे।"
अखिल भारतवर्षीय जैन श्वेतांबर संघ : " समाज व देशने एक महान् मार्गदर्शक खो दिया है।" ___श्री केदारनाथजी : “समाजसुधार और शिक्षणको महत्त्व देनेवाली और उसके वास्ते सदैव प्रयत्नशील रहनेवाली उनके जैसी विभूतियां साधुसम्प्रदायमें क्वचित् मिलेंगी। वे सम्प्रदायका अभिमान न रखकर सबके प्रति समभाव रखते थे।"
दिगम्बर सम्प्रदायके अग्रणी शाहू श्री शान्तिप्रसादजी जैन : “आचार्यश्री समाजके लिये उज्ज्वल प्रकाश और सत्प्रेरणाके दिव्य स्रोत थे।"
पंचामृत गुरुदेवका पंचामृत आज भी हमें उपलब्ध है। गुरुदेवका यह रसायन पंचामृत मृतजीवन में प्राण-संचार करने वाला है। यह पंचामृत पांच दुर्लभ वस्तुओंसे बना है। ये कीमती वस्तुएं हैं : संयम (आत्मशुद्धि), शिक्षा, सेवा, साहित्य एवं एकता।
१. संयम-शील -- संयम या आत्मशुद्धिको गुरुदेवने जीवनका आधार माना । संयम रूपी सिक्केकी दूसरी बाजू है शील । गुरुदेवने शीलके संबंध कहा :
_ "व्यापक और शुद्ध धर्मका दूसरा अंग शील है। शील मानवजीवनका अमूल्य आभूषण है। सोना-चांदी और हीरे-मोतीके गहनोंसे शरीरको सजानेसंवारनेकी अपेक्षा शीलके गहनोंसे आत्मा सजाना-संवारना मनुष्यका प्रथम
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