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________________ कल्याणमार्ग जैन-एकता हो जाने पर हमारे पास सभी फिरकेके मुनियों, साधुसाध्वियों, त्यागियों आदिका जो विपुल खजाना है, उनकी आध्यात्मिक शक्ति जो आज साम्प्रदायिकताकी चहारदीवारीमें बन्द हो कर कुण्ठित हो गई है, वह व्यापक बनेगी। सारा जैनसमाज ही नहीं, सारा मानवसमाज उनसे लाभ उठाएगा। इस प्रकार त्यार्गीवर्गके आध्यात्मिक तेजका प्रभाव सर्वव्यापी हो जायगा। जैन-एकतासे एक लाभ यह भी होगा कि सभी फिरकेके जैन एकदूसरेके उत्सवों, पर्वो, त्योहारों, विवाह, जन्म, मृत्यु आदि विशिष्ट अवसरों या किसी आयोजनोंमें भाग ले सकेंगे। धर्म मनुष्य-मनुष्यके बीच वात्सल्यसम्बन्ध जोड़ कर, भेदभावोंकी दीवारें तोड़ कर अभेदभाव की ओर ले जाता है; जबकि पंथ और सम्प्रदाय जब धर्मतत्त्वरहित हो जाते हैं तो भेदभावकी दीवारें खड़ी कर देते हैं, आपसमें लडाने-भिड़ानेका काम करते हैं; धार्मिक क्रियाकाण्डोंको ही अधिक महत्त्व देने लगते हैं। वे उनमें तो लाखों रुपयोंका धुंआ उड़ा देंगे, लेकिन उन रुपयोंको बचाकर जनहितकारी प्रवृत्तियोंमें लगानेसे हिचकिचाएंगे, बहाने बनाएंगे। आप सभीसे मेरा अनुरोध है कि आप यह नियम लें कि 'हमें अपने सहधर्मी-भाइयोंको अपने समान सुखी बनाना है।' इसके लिये अपने मौजशौकमें कमी करके, खर्चमें कतरव्योंत करके जो पैसा बचाएं, वह उनकी उन्नतिके कार्योंमें लगाएं। यदि आप विद्यावान हों तो उन्हें विद्या, और हुन्नरमें प्रवीण हों तो हुन्नर सिखाएं। बूंद-बूंदसे सरोवर भर जाता है, वैसे ही एक एक पैसा देनेसे लाखों रुपये सहधर्मी-उत्कर्षके लिए एकत्र हो सकते है। याद रखिए, दस हजार रुपये खर्च करके एक दिनका जीमन (दावत) देनेकी अपेक्षा उन्हीं दस हजार रुपयोंसे अनेकों परिवारोंको सुखी बनाना उत्तम कार्य है। विवाहशादियोंमें धनका धुंआ उडानेके बजाय उस खर्चमें कटौती करके उस धनराशिसे सहधर्मीभाइयोंको विविध उद्योग-धंधोंमें लगा दो। -- आचार्य श्री विजयवल्ल भसूरिजी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002669
Book TitleDivya Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharchandra Patni
PublisherVijay Vallabhsuriji Janmashatabdi Samiti
Publication Year1971
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size4 MB
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