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________________ प्रस्तावना प प्रमाणे अट्ठावीश सौदर्य मनुष्यरूप मोहराज पतित थतां बलि राजर्षि अस्खलितपणे आगळ वधी सिद्धिोधना क्षीणमोह गुणस्थान नामना बारमा पगथिया पर पहोंचो गया. त्यां मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनःपर्यायज्ञानावरण अने केवलज्ञानावरण प पांच रूपने धारण करनार एवा ज्ञानावरणने हृण्यो दानांतराय, लाभांतराय, भोगांतराय, उपभोगांतराय अने वीर्यांतराय ए पांच अंतरायने हण्या. निद्रा, प्रचला, चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण अने केवलदर्शनावरण- प छ दर्शनावरण ना भेदोने हण्या. आ प्रमाणे धातिकर्म चतुष्टय रूप चार महानायक पतित थतां रिपु- सैन्य प्रायः अनाथ अने अशक्त थई गयुं. पटले पूर्वे ज्ञानावरण अने दर्शनावरणे आवृत्त करी दीघेलुं, सकल पदार्थना समूह ने प्रकाशनारुं एवं केवलज्ञान अने केवलदर्शन तेमने प्रगट थयुं. पछी ते सयोगीकेवलि गुण स्थान नामना तेरमा पगथीया पर आरूढ थया. आ जाणी चारित्र धर्म वगेरे परम हर्ष पाम्या. तेना सैन्यमां बधा हर्षाविषथी पुष्ट बनी गया. १३ त्यार पछी बलि केवलोप अनेक देशोमां विहार करी, मोहादिना रहस्यो प्रगट करी तेनो विडंबनाओमांथी अनेक भव्य जीवोने छोडाव्या. अनेक दुःखोथी मुक्त थवाथी संतुष्ट थयेला जनोप तेमने 'भुवनभानु' पत्रु' नाम आप्यु. आ प्रमाणेनी भुवनभानु केवलोनी कथा जाणीने चंद्रमौलि राजाने पण संवेग उत्पन्न थाय छे. ते पण पोताना पुत्र चंद्रवदनने राजगादी सौंपी, महोत्सवपूर्वक भुवनभानु केवली पासे दीक्षा ग्रहण करे छे. अल्प दिवसोमां ज ते बधी शिक्षा ग्रहण करी, चौद पूर्वनो अभ्यास करी महाप्रभावक अने गुणवंत बन्या. योग्य अवसरे भुवनभानुप तेमने आचार्यपदे स्थाया. पछी पोते शैलेशीकरणरूपी करवालथी कर्म शत्रुना बाकी रहेला वेदनीय, आयु, नाम अने गोत्र नामना भयोपग्राही कर्म-चतुष्टयनो क्षय करी, चारित्रधर्मना समस्त सैन्यनी अति उन्नति करी, सर्व शरीर अने कर्मनो संबंध छोडी दई, समग्र संसारना- दुःखप्रपंचथी मुक्त थई, निवृत्तिपुरीना स्वामी बन्या. कथानक परंपरा भुवनभानु केवळीना जीवननो विषय जैन लेखकोमां घणो प्रसिद्ध अने प्रिय रह्यो जणाय छे. संस्कृत, प्राकृत अने गुजराती भाषामां आ ज विषय उपर रचायेली कृतिओनी अनेक हस्तप्रतो भंडारोमां उपलब्ध थाय छे ते हकीकत आ वातनी साक्षी पूरे छे. आ कथानकवाळी सौ प्रथम रचना आचार्य हेमचंद्रसूरि मलधारी ( ई. स. १२ मी सदी) नी 'भुवनभानुकेवलि - चरित' छे. तेमना 'भवभावना' (रचना ई.स. ११२३) नामक ग्रंथनी स्वोपज्ञ संस्कृत वृत्तिमां पांवमी अनित्य भावनाना विवेचनमां आ वरिनी गुंथणी करायेल छे.' आ. सिद्धर्षिनी प्रसिद्ध रूपककथा 'उपमितिभवप्रपंचकथा' (रखना ई.स. ९०५) ना अनुकरणमा आ कथा लम्बाई होय तेम बे बच्चेनुं वस्तुगत साम्य जोतां प्रथम नजरे ज जणाय छे. इन्द्रहंस गणिए आ. हेमचन्द्रनी रचनाना आधारे ज पोतानी रचना करी छे. प्रशtani करेला उल्लेखथी अने समग्रकाव्यना आंतरिक साम्य परथो पण आ हकीकत समर्थित थाय छे. १. भव-भावना, मलधारी हेमचन्द्रसूरि, प्रका. ऋ. के. पेढी, रतलाम, ई. स. १९३८ पृ. २७२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002643
Book TitleBhuvanabhanukevalicariya
Original Sutra AuthorIndahansagani
AuthorRamnikvijay Gani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1976
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
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