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________________ भुवणभाणुकंवलिचरियं सुद्ध-ऽद्धसुद्ध-अविसुद्धरूवतिगधारगो इमो पडिओ । चडिओ अट्ठमसोवाणमपुव्वकरणगुणक्खं जो ॥१३४५॥ गच्छइ तओ वि अनिअट्टबायरगसंपरायनामं च । नवमं सोवाणं सिद्धिमहागेहस्स मुणिनाहो ॥१३४६।। तत्थ नपुंसगवेओ जेणं हणिउं कओ अ गयचिट्ठी । तयणु अ इत्थीवेओ सहसा उवसामिओ जेण ॥१३४७॥ अह हास-रइ-अरह-सोग-भय-दुगंछासरूवरिउछक्कं । जेणं विणासिऊणं धिक्किन्जइ पुरिसवेओ अ ॥१३४८।। अप्पञ्चक्खाणावरण-पञ्चक्खाणावराभिहा कोहा । संजलणरूवकोवो गयचिट्ठा ताव जेण कया ॥१३४९॥ अपञ्चक्खाणावर-पञ्चक्खाणावराभिहा माणा । - संजलणरूवमाणो गयचिट्ठा ताव जेण कया ॥१३५०॥ अपञ्चक्खाणावर-पञ्चक्खाणावराभिहा माया । . संजलणरूवमाया गयचिट्ठा ताव जेण कया ॥२३५१॥ अपञ्चक्खाणावर-पच्चक्खाणावराभिहा लोहा । विरइविसेसजुएणं गयचिट्ठा ताव जेण कया ॥१३५२।। संजलणगलोहो पुण ताडिज्जंतो इमो मुर्णिदेण । सुहमीभूओ 'नंसिअ निलीओ दसमसोवाणे ॥१३५३॥ दसमें तत्थ सुहमसंपरायगुणठाणयम्मि चडिऊणं । सो ताडिऊण लोहो गयचिट्ठो ताव जेण कओ ॥१३५४।। नित्तवसुकुडुंबगमाणुसेसु पडिएसु हेउभूएसु । तम्मयतणुजीओ गयचिट्ठो पडिओ अ मोहनिवो ॥१३५५।। थुल-मूल-सिहा-साहाइसु पडिएसु पडए जहा विडवी । इअ सकुडंबो मोहचरडो कओ जेण निच्चिट्ठो ॥१३५६॥ परमाणंदसुहं अणुहवमाणो विजयसेणनाममुणी । आरुहिओ एगादसमसिद्धिआवाससोवाणं ॥१३५७।। उवसंतमोहगुणठाणलक्खणे तत्थ ठाइ सोवाणे । अंतोमुहुत्तमित्तं जो जिणसमसुद्धचारित्तो ॥१३५८॥ समणो अणुत्तरविमाणुववायउचिअसुचित्तपरिणामो । सुरअसुरसेणिपुजी सोवाणे होइ चिट्ठतो ॥१३५९।। १. नंष्ट्वा ॥ २. नेत्रवसु-अष्टाविंशतिः इत्यर्थः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002643
Book TitleBhuvanabhanukevalicariya
Original Sutra AuthorIndahansagani
AuthorRamnikvijay Gani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1976
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
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