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________________ प्रस्तावना , १५५७ पण उपरोका प्रथम पट्टावलीथी आ पट्टावली भिन्न जणाय छ, कारण के उपरोक्त प्रथम पट्टावलीमां बन्नेना सूरिपदनो कोई उल्लेख नधी इन्द्रहंसगणिनी कृतिओ श्री. मो. द. देशाईए इन्द्रहंसगणिनी चार रचनाओ होवानु जणाव्युं छे'(१) भुवनभानुकेवलि-चरित रचना सं. १५५४ (२) उपदेशकल्पवल्ली , १५५५ (३) बलिनरेन्द्रकथा (४) विमलचरित्र (१) भुवनभानुकेवलि-चरित्र विशे आगळ विस्तारपूर्वक लखेल छे. (२) उपदेशकल्पवल्ली-श्रावकना ३६ कृत्यरूप 'मन्ह जिणाणं आणं...' सज्झाय उपर नी आ संस्कृत टीका छे. दरेक कृत्य संबंधी एक एक ने केटलीक-बार बे बे कथाओ दृष्टांतरूपे आपेल छे एमांनी केटलीक संक्षिप्त अने केटलीक विस्तृत छे. छेल्ली कथा विमल मंत्रीनी छे, ते अति विस्तारपूर्वक आलेखायेली छे. केटलीक कथाओनु वस्तु परंपराथी भिन्न छे ते आ कर्त्तानी विशिष्टता हे. उदा. २६ मा अधिकारमांनी कुरगड मुनिनी कथा अने २८ मा अधिकारमांनी बृहद्रथनी कथा.. कर्ताए आमां केटलीक जग्याए निगममतनु समर्थन करता मुद्दाओ मूक्या छे. आने कारणे रसिक शैली अने सुन्दर कथाओ होवा छतां ग्रंथनो प्रचार जैनोमा ओछो जणाय छे. (३) त्रीजी रचना 'बलिनरेन्द्रकथा' उपलब्ध नथी. नाम परथी लागे छे के ते प्रथम रचनानु ज संस्कृत रूपान्तर हशे. कदाच 'भुवणभाणुकेवाल-चरियं नु अपरनाम 'बलिनरेन्द्र-कथानक' रूपे फरी नोंघायु होय तेम पण बनवा संभव छे. कर्ताप पोते ज 'भु.भा. च.' नी प्रशस्तिमां बीजु नाम 'बलिनरेन्द्र-चरित्र' पवु आप्यु छे. (४) चोथी रचना 'विमलचरित्र'- कर्तृत्व पण शंकास्पद छे. तेनी कोई प्रति हाल उपलब्ध नथी. तेम ज अन्य कोई स्थळे उल्लेख मळतो नथी. परन्तु एक संभावना करी शकाय के उपदेशकल्पवल्लीना अंतमां आवेल बिमल मंत्रीनु कथानक ज आ होय । कथासारे 'भुवनभानु केवलि-चरित्र' एक रूपकात्मक उपदेशकथा छे. तेना नायक, भुवनभानुकेवलो, पूर्वावस्थामा बलि नामे राजा होय छे. जंबुद्वीपना गंधिलावती विजयमां चंद्रपुरी नगरीना राजा अकलंक अने राणी सुदर्शनाना ते पुत्र छे. अनेक वर्ष सुधी राजवैभव भोगवी, एकदा पोताना नगरोद्यानमां पधारेला कुवलयचंद्र केवली पासे मधु राजानु दृष्टांत सांभळी, संवेग उत्पन्न थतां तेमणे संसार त्याग करी प्रवज्या ग्रहण करो. कुवलयचन्द्र केवलीए आ बलि नरेन्द्रने तेमना भवभवान्तरनी कथा कही प्रतिबोध पमाडेल. मुनि अवस्थामां अपूर्व वीर्यशक्तिथी टूक समयमा ज तेओ केवळज्ञानी बने छे अने पछी अनेक देशोमां विहार करी अनेक भव्य जीवोने धर्मबोध आपे छे. अनेक जीवोना आधिव्याधि उपाधिने शमावनार होवाथी लोकोमा 'भुवनभानु' एवा नामे तेओ प्रसिद्ध थया. १. जै. सा. सं. इति. पृ. ७५७-५८ २. उपदेशकल्पवल्ली-भाषांतर, "प्रका. जैन धर्म प्रसारक सभा, भावनगर, १९२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002643
Book TitleBhuvanabhanukevalicariya
Original Sutra AuthorIndahansagani
AuthorRamnikvijay Gani
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1976
Total Pages170
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size7 MB
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