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ततो नमिराह
सुहं वसामो जीवामो जेसिं मो नत्थि किंवणं । मिहिलाए डज्झमाणीएम मे डज्झइ किंचणं ।।१७।। चत्तपुत्त-कलत्तस्व निव्वावारस्स भिवखुणो।।
पियं न विजई किंचि अप्पिय पि न विज्जई ॥१७१। पुनराह शक्रः-पागार कारइत्ता णं नयरस्स अइदुग्गय ।
नाणाजंतेहिं संजुत्तं तओ पव्वय खत्तिया ! ॥१७२।। राजर्षिः प्राह-संजमो नयरं मज्झ सयं च विहियो तहिं ।
दुग्गो पसमपायारो नयजंतेहिं संजुओ ॥१७३। पुनर्वदति शचीपतिः-निवासहेउं लोयस्स सासए सुमणोहरे ।
पासाए कारइत्ता ण तओ पध्वय खत्तिया 1 ॥१७४॥ नमिः प्राह-मूढो चेव जणो पंथे वहतो कुणई गिहं ।
निच्छएण जहिं ठाणं जुत्तं तत्थेव मंदिरं ॥१७५॥ इन्द्रः प्राह-तक्करे निग्गहेऊणं सुत्थं काऊण पव्वय । नमिराह-चोरा रागाइणो चेव ते य निगहिया मए ॥१७६॥ हरिराह-जे केइ पत्थिवा तुज्झन नमति बलगव्विया ।
वसे ते ठावइत्ता ण तओ पव्वय नत्तिया ! ॥१७॥ मुनिरुवाच-जो सहस्सं सहस्साणं संगामे दुजय जिणे ।।
एग जिणेज्ज अप्पाणं एस से परमो जओ ॥१८॥ सुरपतिरवादीत--गिहासमसमो धम्मो को अन्नो एत्थ विज्जई?
दिज्जति जत्थ दाणाई दीणा-Sणाहाइपाणिणं ॥१७९।। साधुरुत्तरयति--जीवघायरओ धम्म में कत्थइ कुणई गिही ।
साधुधम्मगिरिंदस्स राइमेत्तो वि नो इमो ||१८०॥ पुरन्दरः प्राह--सुवन्न-मणि-मुत्ताओ कसं दूसच वाहणं ।
कोसे वड्ढावइत्ता गं तो पव्वय नत्तिया ! ॥१८१॥ [राजर्षिरुवाच] -इ होति हिरणस्स गिरितुल्ला वि रासिणो ।
से तहा विरई कत्तो असंतुहस्स जंतुणो ॥१८२॥ सुराधिपो न्यगादीत--अणागयाण भोयाण कारणम्मि नराहिवा ।।
___ हत्थागए इमे भोए मूढो जं एवमुज्झसि ॥१८३॥ राजमुनिरभाषत--भोगासंसाए नो भोर लद्धे परिचयामह ।
भजिन्नसैभवे दोसे को घयं पियई बुहो? ॥१८॥ सल्लं कामा विसं कामा कामा आसीविसोवमा । कामे पत्थेमाणा अकामा जति दुग्गइं ॥१८५॥
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