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चंद्रजसा नृप ईम कहइ, कुण रयणसिरह अक्षिर लहइ । सवि लहइ निज भुजाबलि वसु धारीयइ ए ॥८९॥ कुण धइ केहनइ आ धरा, पामइ जेहना दिन पाधरा । आ धरा केहनी कहीयइ बापडा ए ॥ तिणि निमी वचन न मानीया, वली दूत न सनमानीया । अभिमा[न] नमिया ते नमिनइ कहइ परगडा ए ॥९॥ वात सुणी नमी कसमस्यु, मनमाहि अधिक अमरष वस्यु । उल्हस्यु बल करि, अरि हणवा भणी ए ॥ वाजइ तूर नफेरी य, नींसाण घुरइ रणभेरी य । वेरी य जांणे चड्यउ, मिहिलां धणी ए ॥९॥ आव्यु नृप हवि सांभली, चंद्रजस नृप कूरवी परजली । मन रूली सांचरीउ, अरि सांहांमु वली ए ॥ अपसुकने ते वारीउ, अधिकारीए मली विचारीउ । बारी य राखी पोलि जडी रह्यउ ए ॥१२॥ अवसर जांणीस्यइ जस्यु, वलो कीजीस्यइ बल छल तिस्यु । तिणि अस्यु आलोची नृपि प्रेरीयु ए ॥ गढरूहु करी ते रघु, नमी ईम सांभली गहिगहिउ । ऊम्हा भावी पुरवर घेरीयु ए ॥१३॥ एम सूत्रता साहूणी, एह वात काहावतिथी सूणी । गुण मणी गुरूणीनइ पूठी (छी) करी ए ॥ साथि एक माहासती लेई मनरंगि महासती । उल्हासती नमिराजा प्रति अनुसरी ए ॥९॥ नमी ते दीठी आवती, आसण दिवारइ भूपती । मनि ईछतु धरमबुधि वंदइ वली ए ॥ भूतलि बइठउ नरवई, तसु धरमकथा कहइ संजई । सूभमई वीकसी जिम रवि करी कली ए ॥९५॥ राजसिरी चंचल अछइ, भोगवीया नरग लहि पछइ । सुणि वछ छोडि संग्राम करणकथा ए ॥ जेठा भाई स्युं रण किम करीयइ, मुझनइ भण वरगुण ए। अभिमान सवे वृथा .... ए ॥९६॥
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