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________________ पद्मसुन्दरसूरिविरचित १२१ सर्वभावेष्वनेकान्तो धर्माणां युगपद्यदा । स्वस्वद्रव्यक्षेत्रकालभावैर्द्रव्यगुणादिभिः ॥१४१।। सर्व स्यादस्ति स्यान्नास्तीत्यस्ति नास्ति द्वयं समम् । स्यादवक्तव्यमेव स्यादस्त्यवक्तव्यमेव तत् ।।१४२॥ नास्त्यवक्तव्यमेव स्यात् क्रमेण च बुभुत्सया । स्यादस्ति नास्त्यवक्तव्यमादेशात् सप्तधा भवेत् ॥१४३।। परिणामः क्रमेणैषामक्रमेण तथा भवेत् । गुणपर्यायवद् द्रव्यं गुणास्तु सहभाविनः ॥१४४॥ पर्यायाः क्रमजाः सत्त्वं प्रौव्योत्पादव्ययात्मकम् । अनन्तधर्मव्याख्यायां सापेक्षा नयसंहतिः ॥१४५॥ नयः सदिति विज्ञानात् सदेवैकान्तदुर्नयः । तथा स्यात् सत्प्रमाणं स्यात् सर्वं स्याद्वादवादिनाम् ॥१४६।। सप्तभङ्गीप्रसादेन शतभङ्ग्यपि जायते । इति मीमांसया तत्त्वं जानतो ज्ञानदर्शने ॥१४७।। व्यवहारात्मके स्यातां ते पुनर्निश्चयात्मके । स्वसंवेद्यचिदानन्दमयस्वात्मावलोकनात् ॥१४८।। . (१४१) सभी वस्तु अनेकान्तात्मक हैं । एक ही समय स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल और स्व-भाव से वस्तु सत् है और परद्रव्य, परक्षेत्र, परकाल और परभाव से वस्तु असत् है। इस प्रकार सभी द्रव्य, गुण आदि को लेकर विचार किया जा सकता है। (१४२१४३) अमुक दृष्टि से वस्तु है, अमुक दृष्टि से वस्तु नहीं है । दोनों दृष्टियों से, क्रम से, वस्त है और नहीं भी है। दोनों ही दृष्टियों से एक साथ वस्तु का वर्णन करना मुश्किल है अर्थात् वस्तु अवक्तव्य है । वस्तु है और अवक्तव्य है। वस्तु नहीं है और अवक्तव्य है । वस्तु है, नहीं है और अवक्तव्य है। इस तरह वस्तु का वर्णन सप्तभङ्गीरूप सात वाक्यों से होता है । (१४४) (द्रव्यों का) परिणाम क्रम से और अक्रम से होता है । द्रव्य गुणपर्यायात्मक है। गुण सहभावी होते हैं । (१४५) पर्याय क्रम से होते हैं । वस्तु का जो सत्त्व है वह उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से व्याप्त है । वस्तु में अनन्त धर्म होते हैं । अतः वस्तु का वर्णन अपेक्षाभेद (नयों) से होता है । (१४६) "है"- ऐसा ज्ञान नय है। "है ही”-ऐसा ज्ञान दुर्नय है। और "अमुक अपेक्षा से है"- ऐसा ज्ञान प्रमाण है । यह सब स्याद्वादवादियों को मान्य है । (१४७-१४८) सप्तभङ्गी के आधार पर शतभङ्गी भी हो सकती है । ज्ञान और दर्शन जब इस प्रकार की मीमांसा के द्वारा तत्त्व को जानते हैं तब वे व्यवहारात्मक कहलाते हैं । जब वे स्वसंवेद्य चिदानन्दमय अपनी आत्मा को देखते हैं तब वे ज्ञान और दर्शन निश्चयात्मक कहलाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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