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________________ १.४ श्रीपार्श्वनाथचरितमहाकाव्य मत्तेभलीच्या पार्श्वमापतन्तं महेश्वरः । धन्याह्वय उपागत्य तक्रमो प्रणनाम सः ॥१७॥ त्रिः परीत्य प्रभु नत्वा पञ्चाङ्गप्रणतिक्रमैः । सन्तुष्टोऽसौ प्रमोदातिरेकात् पुलकिताङ्गकः ॥१८॥ स श्रद्धादिगुणोपेतो महापुण्यसमन्वितः । निर्दोष प्रासुकाहारं ददौ भगवते मुदा ॥१९॥ तद्गेहे रत्नवृष्टिस्तु पपात गगनाङ्गणात् । महादानफलश्रेणी सबः प्रादुरभूदिव ॥२०॥ दिवोऽपतत् प्रसूनानां वृष्टिः सद्गन्धबन्धुरा । महापुण्यलतायाः किं प्रत्यमा सुमनस्ततिः ? ॥२१॥ आमन्द्रमानका नेदुर्नादापूरितदिग्मुखाः । अवावा पुष्परजसो मन्दं शीतो मरुद् ववौ ॥२२॥ अहो! पात्रम् अहो! दानम् अहो! दातेति वाङ्गाणे । प्रमोद मेदुरस्वान्तैर्दै वैरुज्जगिरे गिः ॥२३॥ धन्यमन्यस्तदा धन्यः स्वं कृतार्थममन्यत । यत् पावः स्वपदन्यासैरपुनान्मद्गृहाषणम् ॥२४॥ बनं जगाम भगवान् विधाय स्वतनुस्थितिम् ।। धन्योऽपि तमनुव्रज्य कियदूरं न्यवीवृतत् ॥२५॥ (१७) मस्त हाथी की लीला से आते हुए पाक को देखकर धन्य नामक महेश्वर ने समीप जाकर पाव के चरणों में प्रणाम किया । (१८) तीन परिक्रमा करके, पञ्चाङ्गप्रणति से प्रभ को नमस्कार करके वह धन्य प्रसन्नता के भार से अतीव पुलकित गात्र वाला होकर सन्तुष्ट हुआ (१९) श्रद्धादि गुणों से युक्त, महापुण्यों वाले उस राजा ने शुद्ध, निर्दोष आहार भगवान् को प्रसन्नता से दिया । (१०) उसके घर में आकाशमण्डल से रत्नों की वर्षा हुई मानों महादान के फलों की सन्तति तत्काल प्रकट हुई हो । (२१) पुरुषों को सुगन्धित वृष्टि स्वर्ग से होने लगी। महापुण्यलता की क्या वह ताजी पुष्पवर्षा थी ? (२२) दिशाओं के प्रान्तभाग को मुखरित करने वाली दुन्दुभियाँ बजने लगो, पुष्प के परागों को बहाने वाल शीतल मन्द पवन बहने लगा । (२३) 'अहा ! योग्यपात्र, अहा ! दान, अहा ! इस प्रकार से आकाशप्रांगण में प्रमोदनिर्भर मन वाले देवता जोर से वाणी कहने लगे। (२४ धन्य ने अपने को कृतार्थ व धन्य-धन्य समझा कि पाश्र्व ने अपने चरणकमलों से मेरे घर के आँगन को पवित्र किया । (२५) अपनी शरीरस्थिति करके (भोजन कार्य करके) पार्व भगवान् वन को चले गये । वह धन्य भी थोड़ी दूर तक उनका अनुसरण करके लौट आया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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