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________________ ९८ श्री पार्श्वनाथचरितमहाकाव्य Jain Education International पूर्वान्ह आश्रमपदे विपिने वशोक मूले स पार्श्वभगवान् व्रतमाददानः | केशानलुञ्चदभिनम्य स सर्वसिद्धान् संत्यज्य सङ्गमखिलं त्रिविधं त्रिधेति ॥९३॥ सावधादखिलाद् विरम्य जगृहे सामायिकं संयमं तदभेदान् व्रतगुप्तिचारुसमितिस्फारान् बिरागः प्रभुः । प्रत्यैच्छन्मघवा सुख्नपटलीपात्रेण तन्मूर्द्धजान् सानन्दं त्रिदशास्तु दुग्धजलधावादाय तांश्चिक्षिपुः ||९४ || सं जातरूपधरमीशमुदप्रदीप्तिं नानासुरासुरगणार्चितसुन्दराङ्गम् । दृष्ट्रा सहबनयनः किल नाप तृप्तिं नेत्रैः सहस्रगणितैरपि सप्रमोदः ||९५ || तं जिनेन्द्रमथ वासवादय स्तुष्टुवुः प्रमदतुष्टमानसाः । भारतीभिरभितः सनातनं सूक्तियुक्त विशदार्थ वृत्तिभिः ॥ ९६ ॥ एवं विभुस्त्रिभुवनैकभूषण स्त्वं जगज्जनसमूहपावनः । स्वामनन्तगुणमीश ! यत् स्तुम स्तद्धि भक्तिमुखरत्वमेव नः ||९७ || अशोक वृक्ष के नीचे, तोनसौ राजाओं के साथ उन्होंने व्रत ग्रहण किया । तीनप्रकार के अखिल सँग को त्रिधा त्यागकर सर्वसिद्धों को नमस्कार करके उन्होंने केश का कुंचन किया । (९४) सभी दोषों से विरक्त होकर विरागी प्रभु ने सामायिकरूपसंयम और उसके व्रत, गुति, समिति ऐसे अनेक मेदों को ग्रहण किया । इन्द्र ने उन केशों को सुन्दर रहनपात्र में स्थापित किया तथा आनन्दपूर्वक देवताओं ने उसे क्षीरसागर में विसर्जित कर दिया । (९५) स्वर्ण के रूप को ' धारण करने वाले, अश्यन्त तेजस्वी, अनेक देव तथा असुरों के द्वारा चिमके शोभन अंगों का पूजन किया गया है ऐसे उस पार्श्व को देखकर, प्रसन्न इन्द्र को अपने हजार नेत्रों से भी तृप्ति नहीं हुई । (९६) उस सनातन जिनेन्द्र भगवान् की इन्द्रादि देवताओं ने प्रसन्नमन होकर शोभन उक्तिओं, युक्तिओं और विशद अर्थवाली रीतियों से पूर्ण वाणी द्वारा स्तुति की । ( ९७ ) हे प्रभो! आप व्यापक हैं, त्रिलोकी के अनुपम भूषण है, सांसारिक लोगों को पवित्र करने स्तुति करते हैं वह तो मात्र आपके आपकी हे प्रभु ! हम जो वाचालता ही है। वाले हैं । अनन्तगुणवाले प्रति भक्ति के कारण हमारी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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