SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९६ श्री पार्श्वनाथ चरितमहाकाव्य Jain Education International इत्थं साक्षाज्ञानवैराग्यनिष्ठः सर्वासङ्गात् व्यक्तरङ्गो जिनेन्द्रः । ताबद् देवैरेष सारस्वताद्यैः स्वर्गायातैः संस्तुतः स्तोत्रवृन्दैः ||८३|| पूर्वं मुक्त्वा पुष्पवृष्टि सुरास्ते सद्गन्धाद्रयां पारिजातद्रुमोत्थां । वर्द्धस्वेश ! त्वं जयेत्य दिगीर्भिः पार्श्व स्तोतुं ते समारेभिरेऽथ ॥ ८४ ॥ धातारं त्वामामनन्ति प्रबुद्धा जेता त्वां सर्वकर्मद्विषां वा । प्राग्नेतर धर्मतीर्थस्य देव ! ज्ञाता वा विश्वविश्वार्थवृत्तेः ॥८५॥ उद्धर्ता त्वं मोहपङ्कज्जनानां निर्मग्नानां धर्मः स्तावलम्बैः । बन्धुः साक्षादत्र निष्कारणस्त्व साक्षान्मोक्षमार्ग विवक्षुः ||८६|| साक्षाद् बुद्धवं स्वयं बुद्धरूपः स्वामिन् ! वेद्यं वेदिताऽसि त्वमेव । ध्येयो ध्याता ध्यानमाद्यः स्वयम्भू - बध्योऽस्माभिस्तन्नियोगो निमित्तम् ॥८७॥ ( ८३ ) इस प्रकार साक्षात् ज्ञान और वैराग में निष्ठा वाले, सभी प्रकार की आसक्ति को छोड़ने से रागमुक्त जिनेन्द्र की स्वर्ग से आये सारस्वतादि देवताओं ने सुन्दर स्तोत्रों से स्तुति की । (८४) सबसे पहले उन देवों ने सुगन्धित पारिजात वृक्षों की पुष्पवृष्टि को । 'हे भगवन् !, आपकी जय हो, आपकी उन्नति हो,' इत्यादि वचनों से पार्श्व की स्तुति करना प्रारम्भ किया । (८५) हे देव ! ज्ञानी लोग आपको विश्व का पालक समझते हैं, आपको ही सभी कर्मरूपी शत्रुओं का विजेता मानते हैं, आपको ही धर्म तीर्थ का प्रथम नेता जानते हैं और आपको ही विश्व के सभी पदार्थों का ज्ञाता जानते हैं । (८६) आप ही धर्मरूपी हाथ की सहायता देकर मोहरूपी कीचड़ में डूबे हुए लोगों को इस कीचड़ से बाहर निकालते हैं । यहाँ आप (लोगों के) निष्कारण मुख्यरूप से बान्धव हैं । आपने ही मुख्यरूप से त्रिविध (अर्थात् सम्यक् ज्ञान - दर्शन - चा रत्रिक रूप ) मोक्ष मार्ग का उपदेश दिया है । (८७) स्वयं बुद्धरूप हैं । हे स्व मिन् !, ज्ञेय भो आप हैं और ज्ञाना भी आ ही हैं । आप ही ध्येय हैं, ध्यता हैं और ध्यान भी आप ही हैं । आद्य स्वयंभू भी आप ही हैं। आप हमारे तो केवल निमित्त से, नियति से ही हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy