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________________ श्रीपाश्र्वनाथचरितमहाकाव्य अथ हास्तिकसङ्घट्टनीलस्थूलघनाघनः । शरासारक्षतोद्भूतरुधिराम्भ:प्लुतक्षमः ॥१७२॥ कृतबाहीक-काम्बोजाश्वीयमायूरताण्डवः । स्फुरन्निस्त्रिंशचपलो निस्वानस्वानगर्जितः ॥१७३॥ कठोरद्रुघणाघाताशनिनि?षभीषणः । चलत्पाण्डुपता कालीबलाकाव्याप्तपुष्करः ।।१७४॥ धनुरिन्द्रधनुःशोभी सैन्ययोरुभयोस्तदा । विस्फारसमरारम्मः पुपोष प्रावृषः श्रियम् ।। कलापकम् ॥१७५।। निशितैर्विशिखैभिन्नवपुषः परितो भटाः । सेधानुकारतां भेजुः शस्त्रघातास्तचेतनाः ॥१७६॥ ततस्तु कालयमनः क्रुद्धः काल इवापरः । विलय सेनामरुणत् प्रसेनजितमेव सः ॥१७७।। युयुधे सम्मुखीभूय सोऽपि तेन रुषाऽरुणः । ततः पार्श्वकुमारस्तु निजसैनिकसम्वृतः ॥१७८।। आगाज्जयजयारावाकीर्णनिस्वाननिस्वनः । महाकलकलस्तत्र प्रावतत महारणे ॥१७॥ (१७२-१७५) हाथिओं के झुण्ड के कारण काले काले बादलों वाला, बाणों के धाव में से निकलते रुधिर के कारण जलवर्षणक्षम, बालीक काम्बोज अश्वों के कारण मयरताण्डव वाला, चमकती तलवारों के कारण बिजलीयुक्त, आवाज और कोलाहल के कारण बादलों की गर्जना वाला, कठोर द्रुघण (गदाओं) के आधात के कारण वन की आवाज से भयंकर, चञ्चल श्वेत पताकाओं के कारण गुलियों से व्याप्त तालाबों वाला, धनुष के कारण इन्द्रधनु की शोभा. वाला. दोनों सैन्यों के युद्ध का विस्तृत आरम्भ वर्षा काल की शोभा को पुष्ट करता था। (१६) चारों ओर से तेज बाणों से क्षत शरीर वाले योद्धा शस्त्रों की चोट से गतचेतना होते हुए लाल तरबूज' के समान हो गये । (१७७) तदनन्तर द्वितीय यमराज की भांति क्रोधित वह कालयमन सेना को उलांघ कर प्रसेनजित् को ही रोकने लगा । (१७-१८ सामने होकर वह भी क्रोधितमुख हो लड़ने लगा। तब अपने सैनिकों के साथ जय-जय की बड़ी पुकार करता पाश्र्वकुमार आ पहुँचा। वहाँ रणभूमि में महाकोलाहल मच गया । १ सेभ नामक एक तरबूज होता है जिसका रंग लाल होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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