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________________ पद्मसुन्दरसूरिविरचित पुरी नाकपुरीवाssसीत् त्रिदशा इव नागारा: नाना शृङ्गारवेषाढ्या नार्यो देव्य इवाबभुः ॥९॥ दानशौण्डे नृपे तस्मिन्नश्वसेने यथेप्सितम् । दानं दातरि कोऽप्यासीदपूर्णेच्छो न मार्गणः ॥ १० ॥ पौराः सर्वेऽपि तत्रत्याः प्रमोदभरनिर्भराः । नकोप्यासीन्निरुत्साहो निरानन्दोऽथ दुर्विधः ॥ ११॥ निर्वृते जन्ममागल्ये दशाहिक महामहम् । विधाय द्वादशे घस्त्रे नृपे ज्ञातिमभोजयत् ॥१२॥ तल्पपार्श्वे तु यत् सर्पमपश्यज्जननी ततः । महान्धतमसे चक्रे 'पार्श्व' नाम शिशोरिति ॥१३॥ अथ देवकुमाराश्च सवयोरूपशालिनः । पार्श्वस्य परिचर्यायै तस्थुः शक्रनिरूपिताः ॥ १४ ॥ इन्द्राऽऽदिष्टास्तदा धात्र्यो देव्योऽस्याssसन्नुपासिकाः । मज्जने मण्डने स्तन्ये संस्कारे क्रीडने यताः || १५ || शिशुः स्मितं क्वचित् तेने रिङ्खन्मणिमयाङ्गणे । विभ्रच्शवलीलां स पित्रोर्मुदमवर्धयत् ॥ १६ ॥ ( ९ ) वह नगरी स्वर्गपुरी की भाँति थी । नागरिक लोग देवताओं के समान थे । अनेक शृंगार और वेशों से सम्पन्न नगरस्त्रियाँ देवियों की भाँति शोभित हो रही थीं 1 (१०) दान देने में चतुर उस राजा अश्वसेन के इच्छानुसार दान देने पर कोई भी याचक अपूर्ण अभिलाषा वाला नहीं था । ( ११ ) वहाँ के नागरिक आनन्द से पूर्ण थे । कोई भी उत्साहहीन नहीं था, न कोई आनन्द रहित था और न कोई दुःखी था । ( १२ ) जन्मकल्याणकोत्सव के सम्पन्न हो जाने पर दशाहिक महोत्सव सम्पन्न करके बारहवें दिन राजा ने अपनी जाति के लोगों को भोजन कराया । (१३) एक बार शय्या के पास उस पार्श्वकुमार की माता ने महान्धकार में, एक सर्प को देखकर बालक का 'पा' नाम रखा । (१४) इसके बाद देव कुमार जो पार्श्वकुमार के समान ही अवस्था व रूपसौन्दर्यशाली थे, इन्द्र की आज्ञा पाकर पार्श्व की सेवा में स्थित रहे। (१५) इन्द्र के आदेशानुसार धात्री देवियाँ इस कुमार की सेवा में रहने लगीं और वे उसके स्नान, अलंकरण, दुग्धपान, संस्कार, खेलकूद कार्यों में प्रयत्नशील रहने लगीं । (१६) वह शिशु राजकुमार मणिमय प्रांगण में चलता हुआ मन्दहास करता था और शैशवलीलाएं करता हुआ वह माता-पिता को प्रसन्नता को बढ़ाता था । Jain Education International ५५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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