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________________ ४ श्रीपार्श्वनाथचरितमहाकाव्य अथ दौवारिकैर्देवैः कृतहुंकृतिनिःस्वनैः । कृतसंज्ञास्तदा जोषमासुः सामानिकामराः ॥१६९।। अथ प्रारब्धवान् स्नात्रं दिव्यगन्धोदकैर्हरिः । गन्धलोभभ्रमभृङ्गै गारोदरसंस्थितैः ॥१७०॥ गन्धाम्बुधारा शुशुभे पतन्ती जिनविग्रहे । तदङ्गसौरभेणेव निर्जिताऽऽसीदधोमुखी ॥१७१। मण्डलामोग्रधारेव प्रत्यूहव्यूहवैरिणाम् । सैषा गन्धाम्भसां धारा दद्याद् वो मङ्गलावलीम् ॥१७२॥ वन्द्या दिविषदां गन्धाम्बुधारा विश्वपावनी । ईशाङ्गसङ्गप्ताऽसौ स्वर्धनीव पुनातु नः ।।१७३॥ एवं गन्धोदकैः स्नात्रं विधाय विबुधाधिपाः । जगच्छान्त्यै ततः शान्तिघोषणां चक्रुरुच्चकैः ॥१७४। तद्गन्धाम्बु गृहीत्वा ते सुराः स्वीयाङ्गसङ्गतम् । विदधुर्मङ्गलार्थ तज्जगन्मङ्गलकारणम् :॥१७॥ तत्प्रान्तेऽथ जयारावमित्रैर्गन्धाम्बुभिस्समम् । वात्योक्षी चक्रिरे देवाः सचूर्णैः कृतसम्मदाः ॥१७६॥ (१६९) जिन्होंने हुँकार शब्द किये हैं ऐसे दौवारिक देवों से संकेत पाये हुए सामानिक देव चुप हो गये । (१७०) इसके बाद गन्ध के लोभ से भ्रमण करते भ्रमरोंवाले, पात्रगत दिव्य गन्धोदक से इन्द्र ने स्नात्र का प्रारम्भ किया । (१७१) भगवान् जिन के दिव्य शरीर पर गिरती हुई सुगन्धित जल की धारा मानों उनके अङ्ग की खुशबू से निर्जित नीचे की ओर मुख किये हुए शाभित हो रही थी । (१७२) विनव्यूहरूप शत्रुओं के लिए तल. वार की उग्र अग्रधारा की भांति वह गन्धजल को धारा आप सबका कल्याण करे । (१७३) देवताओं की वह सुगन्धित जलधारा जो विश्व में व्यापक है और जो पूज्यनीय है, ईश्वर जिनप्रभ के अङ्ग सम्पर्क से पवित्र गंगानदी को भाँति हमे पवित्र करें । (१७४) इस प्रकार इन्द्रों ने गन्धजल से स्नान करके जगत् की शान्ति के लिए जोर से शान्ति को घोषणा की। (१७५) वे सभी देवतालोग उस गन्धजल को लेकर अपने स्वयं अङ्गों में कल्याण के । लगाते थे क्योंकि वह जल संसार के कल्याण का करने वाला था । (१७६) उसके (स्नात्रके) अन्त में जयध्वनि से मिश्रित और चूर्गयुक्त गन्धोदक के साथ पवन को मदमस्त देवों ने चलाया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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