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________________ श्रीपार्श्वनाथचरितमहाकाव्य चित्राऽथ चित्रकनका सुतेजाश्च सुदामिनी । विदिग्रुचकवासिन्यश्चतस्रो दीपपाणयः ॥८८॥ रूपा रूपान्तिका चाथ सुरूपा रूपवत्यपि । मध्यस्थरुचकादेताश्चतस्रोऽभ्येत्य तत्क्रमात् ॥८९।। नत्वा शिशो भिनालं चतुरगुलवर्जितम् । छित्त्वा भूमिगतं चक्रुः सुगन्धद्रव्यपूरितम् ॥९॥ गर्त विधाय तत्राथ वेदी निर्माय निर्मलाम् । दूर्वाभिरञ्चितां सर्वा मिलित्वा भक्तिपूर्वकम् ॥९१॥ विशालान् सचतुःशालांश्चक्रुस्त्रीन् कदलीगृहान् । पीठत्रययुतास्तत्राभ्यङ्गीद्वर्तनमज्जनैः ॥९२॥ जिनस्य जिनमातुश्च भक्तिं कृत्वा गरीयसीम् । आभियोगिकदेवेभ्यः क्षुद्राद्धिमवतो गिरेः ॥९३॥ गोशीर्षचन्दनैधास्याऽऽनाययामासुराहताः । तान्यग्नौ भस्मसात्कृत्वा भूतिकर्म विभोः करे ।।९४।। रक्षा बवा पर्वतायुर्भवेत्याशिषमुज्जगुः । कलस्वरेण ताश्चक्रुर्भगवद्गुणकीर्तनम् ।९५।। (८८) चित्रा, चित्रकनका, सुतेजा, सुदामिनी-ये चारों रुचक्र के अन्तदिग्भागों में रहने वाली दिकूकन्याएँ हाथ में दीपक लिए हुए (स्थित) थीं। (८९-९०) रूपा, रूपान्तिका, सुरूपा व रूपवती-इन चारों ने मध्य रुचक से क्रमशः आकर बालक जिनके चार अंगुल प्रमाण नाभिनाल को छोड़कर शेष नाभिनाल को काटकर पृथकू कर दिया और उसे द्रव्य सहित जमीन में गाढ़ दिया । (९१) उन सबने भक्तिपूर्वक मिलकर, वहाँ एक गड्ढा बनाकर, शुद्ध वेदी का निर्माण कर उसे हरित दुर्वा से सुशोभित कर दिया। (९२-९५) (उसके बाद) वहाँ उन सबने मिलकर विशाल चार शालाओं वाले और तीन पीठों । से युक्त तीन कदलीगृहों का भक्तिपूर्वक निर्माण किया । वहाँ कदलीगृहों में अभ्यङ्ग, उबटन, स्नान द्वारा जिन को और जिनमाता की बड़ी भक्ति करके, आभियौगिक देवों के पास क्षुद्र हिम- . वतपर्वत पर से गोशोर्ष तथा चन्दन के काष्ठ मंगवाये और उनको अग्नि में भस्मीभूत करके . भादरयुक्त उन दिक्कुमारियों ने भूतिकर्म किया। बाद में उन्होंने प्रभु के हाथ में रक्षासूत्र बांधकर 'पर्वत के समान आयु हो' ऐसा आशीष दिया और सुमधुर स्वर से भगवान् जिन का गुणकीर्शन प्रारंभ किया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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