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________________ श्रीपार्श्वनाथचरितमहाकाव्य मानसोऽस्य प्रवीचारः प्रावर्तत महात्मनः । स सत्कर्मविपाकोत्थं सुखं भुङ्क्ते स्म निर्जरः ॥६६॥ जम्बूद्वीपेऽत्र हेमादेविदेहे पश्चिमे ततः । देशे सुगन्धविजये पुरी तत्र शुभङ्करा ॥६७॥ सा नानाद्रुमतटिनी कूपाऽऽरामैर्विराजितोपान्ता । प्राकारवलयपरिखागोपुरमण्डितविभागा ॥६८॥ तत्राऽस वज्रवीर्यो नृपतिर्वित्रासितस्ववैरिगणः । धनपतिरिव धनदोऽऽसौ तपन इवासीत प्रतापेन ।।६९॥ लक्ष्मीमती तु भार्या निजसौन्दर्येण या रतिमजैषीत् । तत्कुक्षौ मुनिदेवोऽप्यवातरच्छेषपुण्येन ॥७॥ पूर्णेऽथ गर्भसमये जन्यं समजीजनज्जनन्येषा । नाम्ना स वज्रनाभो विज्ञातः स्वजनवर्गादौ ॥७॥ अभ्यस्य कलाः सकला नृपविद्यानां स पारदृश्वाऽभूत । पित्रा कृताभिषेको राज्यं लब्ध्वा शशास महीम् ॥७२॥ भुक्त्वा स महाभोगान् दत्त्वा विद्यायुधाय पुत्राय । क्षेमङ्करजिनपार्वाज्जैनी दीक्षामुपादत्त ॥७३॥ (E) वह महात्मा मन से ही कामसुख को भोगता था। इसी तरह उस देव ने पण्य कर्मों के फलसुख को भोगा और उन कर्मों से मुक्त हआ ॥ (6) अम्बदीप में हिमगिरि पर्वत की पश्चिम दिशा में, महाविदेह क्षेत्र में, सुगन्धविजय के प्रदेश में, शुभकरा ( नामक ) एक नगरी थी । (६८) वह नगरों नाना प्रकार के वृक्ष, नदी, कृप व उद्यान आदि से शाभित प्रान्त वाली प्राकार (=परकोटा), वलय =घेरा), परिखा (खाई) एवं गोपुरों द्वार) से शोभित भागवली थी ।। (६९) उस शुभकरा पुरी में समस्त शत्रुओं को त्रस्त करने वाला वज्रवीर्य नामक राजा कुबेर की भाँति धन देने वाला था तथा प्रताप ( पराक्रम ) के कारण वह सूर्य के समान था ॥ (७०) उस राजा की लक्ष्मीमती भार्या थी जिसने अपने सौन्दर्य से कामदेव की पत्नी रति को भी जीत लिया था। पुण्य के क्षीण होने से उस देव ने उस रानी के उदर में अवतार लिया ॥ (७१) गर्भ का समय पूरा होने पर देवी लक्ष्मीमती ने पुत्र को उत्पन्न किया। वह पुत्र अपने कौटम्बिक वर्ग में वज्रनाभ नाम से जाना गया ॥ (७२) वह राजकुमार वज्रनाभ सम्पूर्ण कलाओं का अभ्यास करके राजविद्याओं में पारङ्गत हो गया । पिता के द्वारा अभिषिक्त होकर, राज्य प्राप्त कर वह पृथ्वो का शासन करने लगा। । (७३) उसने अनेक प्रकार के ऐश्वर्यो को भोगकर विद्यायुध नामक पुत्र को राज्य देकर, क्षेमंकर जिन से जैन धर्म को दीक्षा ग्रहण की । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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