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________________ Jain Education International ग्रन्यजन्म नव निपाव के नाम पाश्व" विवाहित दीक्षा काल (कब दीक्षा ली) | केवलज्ञान प्राप्ति । पार्श्व का निर्वाण | का रहस्य अथवा अविबाहित ? | की तिथि गुणभद्र का विशाखापौषकृष्णा इन्द्र ने बालक विवाह का, कुशस्थल पौषकृष्ण एकादशी दिन, चैत्र कृष्ण त्रयोदशी को, | श्रावण शुक्ला महापुराण | नक्षत्र | एकादशी का नाम पार्श्व जाने व युद्ध करने प्रातःकाल के समय, तीन पूर्वाह्न काल में केवल- सप्तमी के दिन, रखा था. का कोई भी । सो राजाओं के साथ | ज्ञान प्राप्ति । प्रातःकाल में, प्रसंग नहीं आया दीक्षा ली। सम्मेद शिखर पर पाव का निर्वाण हुआ -- -- पुष्पदन्त का महापुराण For Private & Personal Use Only त्रिषष्टि शलाका पुरुषचरित नक्षत्र १४ कशस्थल के राजा पौष मास की कृष्ण | आश्रमपद उद्यान में, विशाखा नक्षत्र की कृष्णा रात्रि में गर्भ के प्रसेनजित क पुत्री एकादशी को, चन्द्र के दीक्षा से ८४ दिवस में, श्रावण शुक्ला | प्रभाव से पार्श्व प्रभावत' से ववाह अनुराधा नक्षत्र में आने पश्चात्, चैत्रमास की | अष्टमी का, | से गुजरते सर्प) व युद्ध का प्रसंग | पर, अष्टम तप करके | कृष्ण चतुर्थी चन्द्र के | पूर्वाह्न में, सम्मेद को रानी ने | आया है। ३०० राजाओं के साथ, विशास्त्रा नक्षत्र में आने | शिखर पर निर्वाण देखा था अतः विशाणा नाम की शिविका/ पर, पूर्वाह्न काल में पाश्व" हुआ । | पार्व नाम में बैठ कर, आश्रमपद को केवल ज्ञान उत्पन्न रखा में दीक्षा ली। हुआ। पद्मसुन्दरसिरि काश्रीपारवंनाथचरतम् चैत्र कृष्ण चतुर्थी का | चैत्र कृष्ण चतुर्थी पूर्वाह | के पूर्वाह www.jainelibrary.org
SR No.002632
Book TitleParshvanatha Charita Mahakavya
Original Sutra AuthorPadmasundar
AuthorKshama Munshi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1986
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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