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________________ विषय पृवाद पृष्ठाक स्सग्ग करे पछी करे, १९ दोष दूषित करे, प्रमाणथी ओछो अधिको करे, निद्रा-आलस आदिथी न करे, वंदन गुरुथी पहेलां दे अथवा पछी दे, अविधिथी दे तेमां प्रायश्चित्त । विना कारण प्रतिक्रमण न करे, आलसथी बेठा करे, वंदन न दे, बेठा दे, खमासमण अविधिथी दे, न दे, नियम छतां शक्ति छतां प्रतिक्रमण थोडंएकवार करे, सात क्षेत्रना दानमां शक्ति गोपवे, त्रिकाल पूजा करवानी सामग्री छतां थोडं-एकवार करे, तप-स्वाध्याय-संविभाग शक्ति छतां थोडु थोडु करे, नियम छतां देवगुरुने वंदन न करे, ज्ञानभणवा-गणवामां आलस करे, दर्शनसाधर्मिकवात्सल्य न करे, चारित्र विषय मूल-उत्तर गुणमा प्रमाद करे, तपविनय-वैयावच्चादि न करे, द्रब्यादिना अभिग्रह ग्रहण न करे, भांगे, ए बधामा प्रायश्चित्त। द्रव्य-क्षेत्र-कोल-भाव-पुरुष-प्रतिसेवनाना भेदथी प्रायश्चित्तमां भेद । द्रव्य-क्षेत्र-कोलनु स्वरूप । भाव-पुरुषनु स्वरूप । प्रतिसेवनाना चार अने कल्पना चोवीश प्रकार । ७५ दान-तपः-कालप्रायश्चित्तना बब्बे भेदो। ७७ श्रुतव्यवहारने आश्रयी नव प्रकारे तप । ७८ नव प्रकारे आपत्ति तप । गुरुपक्ष लघुपक्ष अने लघुकपक्षमा नव प्रकारे दान तप । वर्षादि काल आश्रि दानतपना भेदो। ८१ भेद यंत्र । केटला नमस्कारसहितादि पच्चक्खाणोथी उपवास थाय । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002631
Book TitleSaddha Jiyakappo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmghoshsuri
PublisherJain Shwetambar Murtipujak Sangh Surat
Publication Year2006
Total Pages96
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & agam_anykaalin
File Size7 MB
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