SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १ सिंघी जैन ग्रन्थमाला ] ga કાયાના રાસામી િસિાનીમાના અirnar) कवि की दिश सभ्यमिश्रान Toda न्या दिका यत्रयी दिनानिमिलिि उपाल सदावादावा पानामा पाश्रि ि जति विकारेका दिमा संविष्यति करके बिमाि निि लोनी निव n Jain Education International भनि हानमाला दावा करावा विविसी ट्रिक अ जमी तिम् ना नर्म अन्दा लिए क्षेत्र म काि वैशा वारा व्यवहारिकस अक्षतानारिकानिक यति નાનાં उद्यापास पाल महिला पाट विराणी माघाति राज यदि सामान माय य ग रा ३ भा menne राजा स्ववि ४ को नाम श्रीनामद नागविशदियो विकास श्रात नाशकाता क म किंतुजिश्रारणात निमाबि पो तिजुषा निरा समय श्रादवी श्री साम० विवदनं विलन्या सरायकेला तारादनादिना नानीमा श्रीदे पुष्यमिनि या बुडी ग य सारा गानुनाणिनि। उधर मर्वराराम यमाणानि स्वास् विद्या दामिना ग काशन मदाननावितामनदादाय दकियानकर्मी ज्याक्यात स रामद चिना पर लेखी आश्वीयतामा समीर पाना होग में बाबा न २ देश परोलि बेलाबामा विचाराना कार्म विसायेन विदि समारे कितमः स क विवि का जान समस यल ली थी श्री समराया का यो बालेर दास पापा को दिया जो जाबादिनाससंदक पापा ममुद्रोविरा दारा जलदः याद पनि दिनानी याच्यमानादानाकिया करार पारण करिक स्मार पिलं प्रस्ट पारिए पासितवममा सिके पनियादार वाता॥श्रीमयाबादी यानी सिद्धराजः सागर बनपरिगर्जा का सातवा कार्य का पुण्या यह निहार पाशन योजना साका वतीयस्थापकदानादिममदिन दान मिला पिलानायक यातानं दरि इनार सिग (कानालाई नरमादाविदले बादाम निहाल कर श्रीधनुमिदमुच बिलमा यात्रा तेन दिनरात दिया या विजकस्य निर्मलय वामदासी मामलो कालो समयमा किलार शिविरमा रुसमा लिंगिटक लिंग या पायजमन जेल निहिता हिलाल या विराया सोही काराको पानीमा मयाममा पिता द्वारा श्री काही निकषक निरीचगः समा पर लगा ऐसा 3)ज दातानुमोदि कट ५१०४ सम चलितः तथ नावनात [पुरातनप्रवन्धसंग्रह 33-Lennial दासासित विपत्तिः पतिः स्फुरति का एल र नीति यत्रातिप्राये वेतन यस्पडमा वृक्ष्यतेत्तस्पृहारोनलग निदान माग माता व्यत्तस्याददे विनययं नोब कोच रूमः खप नारासक्ताः परमे को पिनलभः एकदा कस्तो निरसरियामति श्रवणाचि निकोलास र्वष्ठतां गोल कोरा मो शिलाम्रद वा पितगोलक दया के तीर दिला करफाटयित्वा वादनामिति स्त्रायोजन पाहत एक चित्रणिपातयित्वा निरितसेनानि ज्ञानेन समंज रातले सर्वकमल खिलाने कारणहरु किन कुर्वन पालितः सूर्यः सचानक नावावर जाने प्रियनपुरादिमाक दिनादितः खादनात सर्वावलोकन विपुल कादिर्व एक पिताना मापन करते तदनना हेरेको निगमका निर कार्या एवं सम पाराय वयमपिता लिखनाकारिता एकसा भा चिंतयति ततः ततः कियनानि पि दोन तपासादिमा घाम नो नीद किंपुनःप्राः सोजन्या पति का दिशाविनापिविपरि प निजनि यमक्सर के सिया मूलकस्य राजा लिली लो म For Private & Personal Use Only श्रीविनम येसूर ये सिद्धा याददी अन्यदाका विनश्यक यमनमा नाशि प्रिया राम निविदेतान जितेन वाले टेककेमाने मर्यापितः राजन देश मकस्थलणार थकवा राजाने चाण्यश्रीमय मा नदाला निद्यतनाएं घराकर किरा सपकालवाका नहर क महाशिकचा जिलाध भाजनतिर भित्र मक्किविदित भाषा फिनिक् मामामारुतामयेऽवस्तिभितनत्वाशितादातया मासिकः प्रका सर्वे प्रयासमा माहात्सर्वकं शिरपुरनाथः इति श काया यानि यहियान एकलये डिश चितै सोनी चैत मणिपाठ सति लबजाणी उपगार कांति प्रतिकार आद्य किंड न १-२ प्रबन्धचिन्तामणि संक्षेपके आद्यन्त पृष्ठ ३ B संग्रहका अन्तिम पृष्ठ । दियाश्कंद मतल कांही कमरेतो र नर ना प www.jainelibrary.org
SR No.002629
Book TitlePuratana Prabandha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1936
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy