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चतुर्विशतिप्रवन्धे गोहे उंदुर चित्ती किकिंडूअ हिंडु अ वसे अ॥५॥ वंतरगोणसजाई सत्तवडा अहिवडा य परडा य । भमरसिराहिघिरोलियघिरोलियाणं च नासेइ ॥ ७ ॥ हुंकारंतं च विसं अविसट्टविसट्टपल्लवे चरह । पारस्सनाम श्रा हाँ पउमावइधरणराएणं ॥ ८॥ सप्प । विसप्प ! सरीसव ! धराणिं गच्छाहि जाहि रे तुरि । जंभिंणि धंभिणि बंधणि मोहणि हुं फुटकारेणं ॥९॥ जो पढइ जो अ निसुणइ वइरुट्टामंतसंथवं पुरिसो । तस्सासेसविसाइं कायं न फुसंति भत्तिजुत्तस्स ॥ १० ॥ घयगुलखीरविमिस्सं महुरं परं च जो बलिं दइ । साहूण भत्तपाणं वइरुट्टा तं परिक्खेइ ॥ ११ ॥ इअ धरणोरगदइआ अन्नेहि वि निअकुलेहिं विउलेहिं । देवी करेउ रक्खं वइरुट्टा भविअलोअस्स ॥ १२ ॥ नागिणि नागलोह वहरुट्ट सरावी जो तसु नाम लेइ तसु असुहनिवारी । अजाणंदिलेण संदिहें एहिं थंडिलिमाहिवसेव ॥ १३ ॥ अहववसेवं नाहिडसेवं जाहि जाहि आसीविसमंडल!। नागिणिपुत्तह एह कहिजउ एह आण म न लंघिज्जत॥१४॥ जीवउ नागिणि नागलोउ अहव अलंजरवाउ । जिणि अणाह सणाह किउ नेउरि छुटउ पाउ ॥ १५ ॥ दिसि बंधउ अह दिसि बंधउ बंधउ नइ लळलु । अम्हि अरिहंत दिक्करा घोलउ खंधिहि लळल ॥ १६ ॥ देवदेवस्स जं छत्तं तस्स छत्तस्स जो झओ । तेण छाएमि अप्पाणं मा मे हिंसंतु पन्नगा ॥ १७ ॥ उँ ठः ठः ठः स्वाहा । एवं दवदेवस्स जं छत्तं तस्स छत्तस्स जो झओ । तेण छारमि अप्पाणं मा मे हिंसंतु भूअगा ॥१८॥
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