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________________ के. पी. जयस्वाल (२) महान् वैज्ञानिक सर जगदीशचंद्र बोस, जिनका प्रत्या परिचय मुझे राजगृही में हुआ था और जिनकी जैनतत्वज्ञान एवं जैन इतिहास विषवक जिज्ञासा ने मुझे प्राकर्षित किया था । (३) कृष्णनगर के डिस्ट्रिक्ट इंजीनियर व बंगला के प्रखर लेखक तथा कवि श्रीयुत भूपदेवेन्द्र सोवाकर चटर्जी और (8) मथुरा म्युज्युम के क्यूरेटर श्रीमान् बाबू वासुदेवशरण M., AI इस गन्य के प्रत्येक कार्य में पू० हेतमुनि जी महाराज, मुनिवर्य श्री ज्ञानविजय जी तथा मुनि श्री न्यायविजय जी का उत्साहपूर्ण एवं हार्दिक सहभाव रहा है। तथा रतिलाल जी देसाई न्यायतीर्थ तभूषण, भिखालाल जी देसाई न्यातीय तर्कभूषण तथा पं. रामकुमार जी न्यायतीर्थ विद्याभूषण हिन्दी प्रभाकर ने अकारादि क्रम के तैयार करने में उल्लेखनीय समय का भोग दिया है। अतएव उनका तथा अन्य गन्य-प्राप्ति में सहायक महानुभावों का हृदय से ऋणी हूँ। साथ ही में इस गून्य के मुद्रक पं० भूपसिंह जी शर्मा मैनेजर सरस्वती प्रेस को भी धन्यवाद देना जरूरी समझता हूँ। ____ "पट्टावली समुञ्चय" के सब हिस्से प्रकट होने के पश्चात् ऐतिहासिक विचार पूर्ण एक विस्तृत प्रस्तावना लिखने का विचार होने से इस ग्रन्थ में तत्सम्बन्धी अहापोह नहीं किया है। जैन इतिहास के विस्तृत क्षेत्र के अभ्यासियों को किसी भी अंश में यह गन्य मार्गदर्शक एवं सहायक होगा तो मैं अपने प्रयास को सफल समझंगा। अन्त में इस गन्थ के दूसरे भाग को भी मैं शीघ्रातिशीघ्र पुरातत्व के अमिलाषियों के कर कमल में रख सकूँ ऐसी परमात्मा महावीर से प्रार्थना करते हुए, मैं अपने कथन को पूर्ण करता हूं। रोशन मोहल्ला आगरा, वी. नि. सं. २४५१ ) वसंत पंचमी ) -मुनि दर्शनविजय । विशेष नोट-उपक्रम प्रथम संस्कृत में ही लिखने का विचार था किन्तु वर्तमान राष्ट्रीय प्रवृत्ति व हिन्दी भाषा का. राष्ट्रभाषा बनने की दृष्टि से, बढ़ता हुआ प्रचार देख कर हिन्दी में ही लिखना उचित समझा गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002624
Book TitlePattavali Samucchaya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay, Gyanvijay
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size11 MB
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