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जैनस्तोत्रसन्दोहे
[ श्रीधर्मघोष
ता नाउ सिग्घं गलिअविग्धं विक्कम परमिद्विणो
पाएसु लग्गिवि झत्ति मग्गिवि गुग्गहं पहुदिद्विणो । कारइ सहरिसं गलिअमरिसं मजणं जिणसामिणो ___ तेसदिइंदिहिं मुक्कमंदिहिं सायरं सिवगामिणो ॥१७॥ ता द्रकटिकटिदेंगदैर्दै ढक्क त्रंबकडाहला
वजइ फर्हि भर्हिति भौंभभौंभौंभेरुभंगलकाहला ! घघघर्हिघर्हिति घोंघघौघौं घोरघक्कियघकणा
नमिवि भंगे चंगरंगे नच्चुनचिहि नच्चणा ॥१८॥ दददोंगदोंदों धधगधोंधों घुमधुमंतमद्दला
छछछफल छछफल बर्हि बर्हिति छोछछंछ कंसला । क्रमक्रमकि क्रमकटि झगटि झगटि झल्लरीझंकारए ___ गाइत्तु उँउँ होंहहुंडं इअ थुणंति सुतारए ॥१९॥ देव ! निखिलनयननलिननिकरबोधनविधिदिनकर!
करणनिकरवनगहनदहनभास्वरवैश्वानर !। नरपतिततिनतचलनकमलयामल ! रजनीकर
करसंहतिसितशीलभारधरणैकधुरन्धर ! ॥२०॥ धरणीधरवरधीर ! विगतदुष्टाष्टमहामद !
मदनहुताशनविपुलतापतापितजननीरद !। रदनवसनरक्तत्वविजितनागजवर ! सुविहित__ हितकर ! जिनवर ! दलितकलुष ! जय जय जगदीश्वर !२१ ईसाण सुरेसरि अंकि निवेसरि वीरजिणेसरि हरिसभरे
इमरूवि तिसूलं रिउसिरिसूलं दाहि उ चमरे सिअचिहुरे ।