SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 399
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२६०) जैनस्तोत्रसन्दोहे [ श्रीधर्मघोष ता नाउ सिग्घं गलिअविग्धं विक्कम परमिद्विणो पाएसु लग्गिवि झत्ति मग्गिवि गुग्गहं पहुदिद्विणो । कारइ सहरिसं गलिअमरिसं मजणं जिणसामिणो ___ तेसदिइंदिहिं मुक्कमंदिहिं सायरं सिवगामिणो ॥१७॥ ता द्रकटिकटिदेंगदैर्दै ढक्क त्रंबकडाहला वजइ फर्हि भर्हिति भौंभभौंभौंभेरुभंगलकाहला ! घघघर्हिघर्हिति घोंघघौघौं घोरघक्कियघकणा नमिवि भंगे चंगरंगे नच्चुनचिहि नच्चणा ॥१८॥ दददोंगदोंदों धधगधोंधों घुमधुमंतमद्दला छछछफल छछफल बर्हि बर्हिति छोछछंछ कंसला । क्रमक्रमकि क्रमकटि झगटि झगटि झल्लरीझंकारए ___ गाइत्तु उँउँ होंहहुंडं इअ थुणंति सुतारए ॥१९॥ देव ! निखिलनयननलिननिकरबोधनविधिदिनकर! करणनिकरवनगहनदहनभास्वरवैश्वानर !। नरपतिततिनतचलनकमलयामल ! रजनीकर करसंहतिसितशीलभारधरणैकधुरन्धर ! ॥२०॥ धरणीधरवरधीर ! विगतदुष्टाष्टमहामद ! मदनहुताशनविपुलतापतापितजननीरद !। रदनवसनरक्तत्वविजितनागजवर ! सुविहित__ हितकर ! जिनवर ! दलितकलुष ! जय जय जगदीश्वर !२१ ईसाण सुरेसरि अंकि निवेसरि वीरजिणेसरि हरिसभरे इमरूवि तिसूलं रिउसिरिसूलं दाहि उ चमरे सिअचिहुरे ।
SR No.002613
Book TitleJainstotrasandohe Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChaturvijay
PublisherSarabhai Manilal Nawab
Publication Year1932
Total Pages662
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy