________________
३९८
नेमिनाहचरिउ
[१७७७
[१७७७]
न-उण खोहिउ वीर-जिण-इंदु तयणंतरु अलि-गवल. नीलि-राय-गयणयल-सामलु । फण मंडव-उवरि-ठिय- रयण-कंति अवहरिय-झामलु ॥ सामि-सरीर-विलुपयर- भेरव-दाढ-कडप्पु । फुक्कारंतु मुराहमिण अहि-कुलु मुक्कु स-दप्पु ॥
[१७७८]
तह-वि जय-पहु मणि अ-खुब्मंति जालोलि-कवलिय-तिमिरु भुवण-वासि-जिय-लोय-दुहयरु । दिसियंतर-परिभमिरु अइरु पत्त-धरणियल-वित्थरु ॥ जक्खिण तेण विउविउण खिविउ समुहु कय-डाहु । सुर-गिरि-चूला-अविचलिर- मणह पहुहु हुयवाहु ॥
[१७७९] __ तयणु सामिहि तणु करग्गेण उप्पाडि वि गयणयलि परिखिवंतु गलगज्जि-दारुणु । उल्लालिय-चंड-करु दसण-मुसल-पहु-खोह-कारणु ॥ दिसिहि खिवंतउ संनिहिउ सयलु वि वत्थु-समूहु । जक्खिण खिविउ विउव्विउण पहुहु समुहु गय-जूहु ॥
[१७८०]
अह विलंविय-केस-पन्भारु रोयतु करुणारविण जलिर-जलणु वयणिण मुयंतउ । सु-दुहत्तु कराल-तणु कररुहेहि उरयलु दलंत उ ॥ करयल-कय-कत्तिय-जलण- खप्पर-रुहिर-कवाल । नग्गउ जोगिणि-गणु जणिउ जय-झाण-क्खय-कालु ।। १७७८. १. क. परिभमिर. ६. क. वे उव्विउण. १७७९. २. क, गणियलि.
____Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org