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[१६५८
नेमिनाहचरिउ [१६५८] ___ अहव किं वहुइण भणिएण सव्वत्थ वि उज्जमइ तह कह-चि जह अइर-कालिण । वंभंड वि भरइ निय- चंद-विमल-कित्ति-क्कलाविण ॥ अह जसमइ-देविहि तणउ हुयउ सु-सिविणुवइछु । वियरइ नामु नरिंदु तमु पुंडरिउ ति विसिछु ।
[१६५९]
तयणु पंचहि अव-धाई हिं कीरंत-सरीर-ठिइ पत्त-काल उवझाय-पवरह । पासम्मि वि मुक्कु सुय- रयणु अइर-कालिण वि कुमरह ॥ सम्मु समग्गु वि मणि ठियउ निम्मलु कला-कलावु । अह सिरि-संख-नराहिवइ अवगय-सुय-सब्भावु ॥
[१६६०]
गरुय-रिद्धिण निवइ-दुहियाउ उत्तुंग-थोर-स्थणिउ अट्ठ पवर-वासर-मुहुत्तिण । परिणावइ ताहि सह ललइ कुमरु पसरंतु दित्तिण ॥ एत्थंतरि निय-गुरु-चलण- कमलई परिसेवंतु । वहु-गामागर-संकुलइ धरणियलि विहरंतु ॥
[१६६१]
चंद-निम्मल-विविह-तव-कम्मपरिसोसिय-असुह-भरु सुइर-चरिय-चारित्त-मणहरु । निग्याइय-घाइ-वलु जाय-विमल-केवल-दिवायरु ॥ सिरि-सिरिसेणु सु राय-रिसि भवि-यणु पडिवोहिंतु । तहि सिरि-ह स्थिणउर-नयर- उज्जाणम्मि पहुत्तु । १६५८. ९. क, मुंडरिओ. १६५९. ३. क. ख. उवज्झाय. १६६०. १. क. दुहियाओ. १६६१. ४. क. घाई, ख. घाइय.
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