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तइयभवि चित्तगइवुत्तति सणतुकुमारचरिउ
[५९०]
इय भणेविणु गुरु-निहाएण संभंत-सुर-कामिणिहिं निहय-वच्छ-तुटुंत-हारहं । मुत्तावलि-संवलिय- गलिर-नयण-दल-नीर-धारहं ॥ नीसासिहि सह परिमुयइ मुग्गरु भीरु करालु । उवरि कुमार-सिरोमणिहि निरु अप्पह खय-कालु ॥
[५९१]
तयणु मुग्गर-घाय-विहुरंगु धरणी-यलि निव डियउ कुमरु खयर-सुर-तरुणि-दुह-यरु । ता रक्खस-तणउं वलु किंचि फुरिय-संतोस-सुंदरु । धावइ वग्गइ उप्पयइ घोसइ जय-जय-सह। अह आगय-चेयन्न-भरु कुमरु विभाविय-भदु ॥
[५९२]
गुरु-मडप्फरु फुरिय-भुय-मूल उम्मूलिवि वड-विड वि गरुय-कोव-कंपंत-खंधरु । भू-भंगिण भीम-मुहु चलण-भरिण चालिय-वसुंधरु ॥ अरिरि पिसाय-अहम्म तुह वड-विडविण दलियंगु । कुणउ हरिसु वायस-कुलहं गलिय-जीय-सव्वंगु ॥
[५९३]
इय पयंपिरु समर-संरंभ अवलोयण-वाउलिय- खयर-तरुणि-दसण-कयायरु । मूलग्गई वड-तरुहु दलिवि करिण गुण-रयण-सायरु ॥ आससेण-निव-अंगरुहु कर-कय-वड-दंडेण । एग-पहारिण रिउ हणइ तह जह उदंडेण ॥ ५९२. ९. जीठ.
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