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जावतिअंति अभणिए तस्सेव विगिंचणे सेसं ।।२।। विहिगहिअं विहिभुत्तं अइरेगं भत्तपाण भोत्तव्यं । विहिगहिए विहिभुत्ते एत्थ य चउरो भवे भंगा॥३॥ उग्गमदोसाइजढं अहवा बीयं जहिं जहापडिअं । इय एसो गहणविही असुद्धपच्छायणे अविही ।।२९५|| भा० । कागसियालक्खइयं दविअरसं सव्वओ परामटुं । एसो उ भवे अविही जहगहिअं भोयणंमि विही ॥४॥ उच्चिणइ व विठ्ठाओ काओ अहवावि विक्खिरइ सव्वं । विप्रोक्खइ य दिसाओ सियालों अन्नोन्नहिं गिण्हे ||६|| भा० । सुरही दोच्चंगठ्ठा छोढूण दवं तु पियइ दवियरसं । हेट्टोवरि आमळू इय एसो भुंजणे अविही ।।७।। जह गहिअं तह नीयं गहणविही भोयणे विही इणमो। उक्कोसमणुक्कोसं 5 समकयरसं तु भुजेज्जा ||८|| तइएवि अविहिगहिअं विहिभुत्तं तं गुरूहिऽणुन्नायं । सेसा नाणुन्नाया गहणे दत्ते य निज्जुहणा ॥९॥ अहवावि अकरणाए उवट्ठियं जाणिऊण कल्लाणं । घट्टेउं दिति गुरू पसंगविणिवारणट्ठाए ।।३००|| घासेसणा य एसा कहिया भे धीरपुरिसपन्नत्ता । संजमतवड्ढगाणं निग्गंथाणं महरिसीणं ॥१।। एयं घासेसणविहिं जुंजता चरणकरणमाउत्ता । साहू खवंति कम्म अणेगभवसंचियमणंतं ।।२।।एत्तो परिट्ठवणविहिं वोच्छामि धीरपुरिसपन्नत्तं । जं नाऊण सुविहिया करेंति दुक्खक्खयं धीरा ।।३|| भत्तढ़िअ उव्वरिअं अहव अभत्तठ्ठियाण जं सेसं । संबंधेणाणेण उ परिठावणिआ मुणेयव्वा ।।३०४|| भा० । सा पुण जायमजाया जाया मूलोत्तरेहि उ असुद्धा । लोभातिरेगगहिया अभिओगकया विसकया वा ॥५|| मूलगुणेहिं असुद्धं जं गहिअं भत्तपाण साहूहिं । एसा उ होइ जाता वुच्छं सि विहीएँ वोसिरणं ।।५|| भा० । एगंतमणावाए अच्चित्ते थंडिले गुरूवइठे । आलोएँ एगपुंजं तिठ्ठाणं सावणं कुज्जा ।।६।। लोभातिरेगगहिअं अहव असुद्धं तु उत्तरगुणेहिं । एसावि होति जाया वोच्छं सि विहिएँ वोसिरणं ॥६।। भा० । एगंतमणावाए अच्चित्ते थंडिले गुरूवढे । आलोए दुन्नि पुंजा तिठ्ठाणं सावणं कुज्जा ||७|| दुविहो खलु अभिओगो दव्वे भावे य होइ नायव्वो । दव्वंमि होइ जोगो विज्जा मंताय भावंमि ।।८॥ विज्जाएँ होअगारी अचियत्ता सा य पुच्छए चरिअं। अभिमंतणोदणस्स उ अणुकंपणमुज्झणं च खरे ॥९।। बारस्स पिट्टणंमि अ पुच्छण कहणं च होअगारीए । सिढ़े चरियादंडो एवं दोसा इहपि सिया ॥६००। जोगंमि उ अविरइया अज्झुववन्ना सरूवभिक्खुंमि । कडजोगमणिच्छंतस्स देइ भिक्खं असुभभावे ॥१॥ संकाए स नियट्टो दाऊण गुरूस्स काइयं निसिरे । तेसिपि असुभभावो पुच्छा उ ममापि उज्झयणा ||२|| एमेव विसकयंमिवि दाऊण गुरूस्स काइयं निसिरे । गंधाई विन्नाए उज्झगमविही सियालवहे ॥३॥ एवं विज्जाजोए विससंजुत्तस्स वावि गहियस्स । पाणच्चएवि नियमुज्झणा उ वोच्छं परिठ्ठवणं ।।४।। एगंतमणावाए अच्चित्ते थंडिले गुरूवइठे। छारेण अक्कमित्ता तिठ्ठाणं सावणं कुज्जा ।।५।। दोसेण जेण दुळं तु भोयणं तस्स सावणं कुज्जा । एवं विहिवोसढे वेराओ मुच्चई साहू ॥६|| जावइयं उवउज्जइ तत्तिअमित्ते विगिचणा नत्थि | तम्हा पमाणगहणं अइरेगं होज्ज उ इमेहिं |७|| आयरिए य गिलाणे पाहुणए दुल्लभे सहसदाणे । एवं होइ अजाया इमा उ गहणे विही होइ ।।८।। जइ तरूणो निरूवहओ भुंजइ तो मंडलीइ आयरिओ। असहुस्स वीसुगहणं एमेव य होइ पाहुणए ।।९।। सुत्तत्थथिरीकरणं विणओ गुरूपूय सेहबहुमाणो । दाणवतिसद्धवुड्ढी बुद्धिबलवद्धणं चेव ॥६१०।। एएहिं कारणेहि उ केइ सहुस्सवि वयंति अणुकंपा । गुरूअणुकंपाए पुण गच्छे तित्थे य अणुकंपा।॥१॥ सति लाभे पुण दव्वे खेत्ते काले य भावओ चेव । गहणं तिसु उक्कोसं भावे जं जस्स अणुकूलं ।।२।। कलमोतणो उ पयसा उक्कोसो हाणि कोद्दवुब्भज्जी। तत्थवि मिउतुप्पतरयं जत्थ व जं अच्चियं दोसु ॥३०७|| भा०। लाभे सति संघाडो गेण्हइ एगोउ इहरहा सव्वे । तस्सऽप्पणो यपज्जत गेण्हणा होइ अतिरेगं ॥३॥ गेलन्ननियमगहणं नाणत्तोभासियंपि तत्थ भवे। ओभासियमुव्वरिअं विगिंचए सेसगं भुंजे ॥४॥ दुल्लभदव्वं व सिआ घयाइ घेत्तूण सेस भुञ्जति । थोवं देमि व गेण्हामि यत्ति सहसा भवे भरियं ।।५।। एएहिं कारणेहिं गहियमजाया उ सा विगिंचणया। आलोगंमि तिपुंजा अद्धाणे निग्गयातीणं ।।६।। एक्को व दो व तिन्नि व पुंजा कीरति किं पुण निमित्तं ? | विहमाइनिग्गयाणं सुद्धेयरजाणणछाए।।७।। एवं विगिचिउं निग्गयस्स सन्ना हवेज्ज तं तु कहं । निसिरेजा ? अहव धुवं आहारा होइ नीहारो॥८॥ थंडिल्ल पुव्वभणियं पढमं निद्दोस दोसु जयणाए। नवरं पुण णाणत्तं भावासन्नाए वोसिरणं ।।९।। अणावायमसंलोयं अणवायालोय ततिय विवरीयं । आवातं संलोगं पुव्वुत्ता थंडिला चउरो ॥३०८॥ भा० । अणावायमसंलोगं निहोसं बितियचरिम जयणाए। '
पउरदवकुरूकुयादी पत्तेयं मत्तगो चेव ॥६२०|| तइएविय जयणाए नाणत्तं नवरि सद्दकरणंमि । भावासन्नाए पुण नाणत्तमिणं सुणसु वोच्छं ।।१।। जदि पढमं न तरेज्जा ver
5 5555555श्री आगमगुणमंजूषा १५९८ $$$$$$$$$$$$$$$$$55SFOOR
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