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(२४-३३) दस पइन्नयसुत्तेसु - १० भत्त परिन्ना पइन्नयंA [५९]
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दिट्ठिविसस्स व अहिस्स । जं रमणिनयणबाणा चरित्तपाणे विणासेति ॥१२६।। २०५०. महिलासंसग्गीए अग्गीइ व जं च अप्पसारस्स । मयणं व मणो मुणिणो वि हंत ! सिग्घं चिय विलाइ ॥१२७।। २०५१. जइ वि परिचत्तसंगो तवतणुयंगो तहा वि परिवडइ । महिलासंसग्गीए कोसाभवणूसिय व्व रिसी ॥१२८॥ २०५२. सिंगारतरंगाए विलासवेलाए जोव्वणजलाए । पहसियफेणाए मुणी नारिनईए न वुज्झंति ॥१२९।। २०५३. विसयजलं मोहकलं विलास-बिब्बोयजलयराइन्नं । मयमयरं उत्तिन्ना तारुन्नमहन्नवं धीरा ॥१३०॥ २०५४. अभिंतर-बाहिरए सव्वे गंथे तुमं विवज्जेहि । कय-कारिय-ऽणुमईहिं काय-मणो-वायजोगेहिं ॥१३१|| २०५५. संगनिमित्तं मारेइ, भणइ अलियं, करेइ चोरिक्वं । सेवइ मेहुण, मुच्छं अप्परिमाणं कुणइ जीवो ॥१३२।। २०५६. संगो महाभयं जं विहेडिओ सावएण संतेणं । पुत्तेण हिए अत्थम्मि मणिवई कुंचिएण जहा ॥१३३॥ २०५७. सव्वग्गंथविमुक्को सीईभूओ पसंतचित्तो य | जं पावइ मुत्तिसुहं न चक्कवट्टी वि तं लहइ ॥१३४|| २०५८. निस्सल्लस्सेह महव्वयाई अक्खंड-निव्व णगुणाई। उवहम्मंतिय ताई नियाणसल्लेण मुणिणो वि॥१३५||२०५९.अहराग-दोसगभंमोहग्गब्भं' च तं भवे तिविहं | धम्मत्थं हीणकुलाइपत्थणं मोहगब्भं तं ॥१३६।। २०६०. रागेण गंगदत्तो, दोसेणं विस्समूइमाईया । मोहेण चंडपिंगलमाईया होति दिटुंता ॥१३७॥ २०६१. अगणिय जो मुक्खसुहं कुणइ नियाणं असारसुहहेउं । सो कायमणिकएणं वेरुलियमणिं पणासेइ ॥१३८॥ २०६२. दुक्खक्खय कम्मक्खय समाहिमरणं चबोहिलाभोय। एयं पत्थेयव्वं, नपत्थणिज्जं तओ अन्नं ॥१३९||२०६३. अज्झियनियाणसल्लो निसिमत्तनियत्ति-समइ-गुत्तीहिं। पंचमहव्वयरक्खं कयसिवसोक्खं पसाहेइ ॥१४०|| २०६४. इंदियविसयपसत्ता पडंति संसारसावरे जीवा। पक्खि व्व छिन्नपक्खा सुसीलगुणपेहुणविहुणा ॥१४१॥२०६५. न लहइ जहा लिहतो, मुहिल्लियं अट्ठियं रसं सुणओ। सो सइतालुयरसियं विलिहंतो मन्नए सोक्खं ॥१४२॥ २०६५. महिलापसंगसेवी न लहइ किंचि वि सुहं तहा पुरिसो। सो मन्नए वराओ सयकायपरिस्समं सोक्खं ॥१४३।। २०६६. सुट्ठवि मग्गिज्जतो कत्थ वि कयलीइ नत्थि जह सारो । इंदियविसएसुतहा नत्थि सुहं सुटु विगविट्ठ ॥१४४।। २०६७. सोएण पवसियपिया, चक्खूराएण माहुरो वणिओ। घाणेण रायपुत्तो निहओ, जीहाए सोदासो ॥१४५।। २०६८. फासिदिएण दिट्ठो नट्ठो सोमालिया महीपालो । एक्कक्केण वि निहया, किं पुण जे पंचसु पसत्ता ? ॥१४६।। २०६९. विसयाविक्खो निवडइ, निरविक्खो तरइ दुत्तरभवोहं । देवीदीवसमागयभाउयजुयलं व भणियं च ॥१४७॥२०७०. छलिया अवयक्खंता निरावयक्खा गया अविग्घेणं । तम्हा पवयणसारे निरावयक्खेण होयव्वं ॥१४८||२०७१. विसए अवयक्खंता पडंति संसारसागरे घोरे । विसएसु निरवयक्खा तरंति संसारकंतारं ॥१४९|| २०७२. ता धीर ! घीबलेणं दुईते दमसु इंदियमइंदे । तेणक्खयपडिवक्खो हराहिम आराहणपडागं॥१५०||२०७३. कोहाईण विवाजंनाऊण यतेसि निग्गहेण गुणं । निग्गिण्ह तेण सुपुरिस ! कसायकलिणो पयत्तेणं॥१५१|| २०७४. अइतिक्खं दुक्खं जं च सुहं उत्तिमं तिलोईए । तं जाण कसायाणं वुड्डि-क्खयहेउयं सव्वं ॥१५२।। २०७५. कोहेण नंदमाई निहया, माणेण फरुसरामाई । मायाइ पंडरज्जा, लोहेणं लोहनंदाई ॥१५३|| [गा. १५४-५५. भत्तपरिन्नयस्स गुरुअणुसहिपडिवत्ती] २०७६. इय उवएसामयपाणएण पल्हाइयम्मि । चित्तम्मिजाओ सुनिव्वुओ सो पाऊण व पाणियं तिसिओ॥१५४|| २०७७. 'इच्छामो अणुसहि भंते ! भवपंकतरणदढलढिं। जं जह वुत्तं तं तह करेमि' विणओणओ भणइ ॥१५५|| [गा. १५६-७१. वियणापत्थं भत्तपरिन्नयं पइ गुरूवएसो] २०७८. जइ कह वि असुहकम्मोदएण देहम्मि संभवे वियणा । अहवा तण्हाईया परीसहा से उदीरिज्जा ॥१५६|| २०७९. निद्धं महुरं पल्हायणिज्ज हिययंगमं अणलियं च । तो सेहावेयव्वो सो खवओ पन्नवंतेणं ॥१५७।। २०८०. संभरसु सुयण ! जं तं मज्झम्मि चउव्विहस्स संघस्स । बूढा महापइन्ना 'अहयं आराहइस्सामि' ॥१५८|| २०८१. अरिहंत-सिद्ध-केवलिपच्चक्खं सव्वसंघसक्खिस्स । पच्चक्खाणस्स कयस्स भंजणं नाम को कुणइ ? ||१५९|| २०८२. भालुंकीए करुणं खज्जतो घोरवेयणत्तो वि । आराहणं पवन्नो झाणेण अवंतिसुकुमालो॥१६०॥ २०८३. मुग्गिल्लगिरिम्मि सुकोसलो वि सिद्धत्थदइयओ भयवं । वग्धीए खज्जतो पडिवन्नो उत्तमं अटुं॥१६१।२०८४. गोडे पाओवगओ सुबंधुणा गोमए पलिवियम्मि। डझंतोचाणक्को पडिवन्नो
उत्तमं अट्ठ॥१६२॥२०८५. रोहीडगम्मि सत्तीहओ वि कुंचेण अग्गिनिवदइओ। तं वेयणमहियासिय पडिवन्नो उत्तम अहूँ ॥१६३।। २०८६. अवलंबिऊण सत्तं तुमं पि HOROSFE 555555555555/ श्री आगमगुणमंजूषा - १३४३ 9555555555555555555555555 9OOK
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