SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन दर्शन और प्राधुनिक विज्ञान यह है कि आधुनिक अणु-शक्ति तो केवल उष्मा के रूप में ही प्रकट होती है, पर तेजोलेश्या में उष्णता और शीतलता दोनों गुण विद्यमान हैं । शास्त्रों में तेजोलेश्या के उष्ण तेजोलेश्या और शीतल तेजोलेश्या दो भेद बताये गये हैं । शीतल तेजोलेश्या उष्ण तेजोलेश्या के प्रभाव को तत्क्षण नष्ट कर सकती है । शास्त्रों में उष्ण तेजोलेश्या प्राप्त करने का निर्देश मिलता है पर शीतल तेजोलेश्या किस अनुष्ठान से उत्पन्न होती है, यह वर्णन कहीं नहीं मिलता । वैज्ञानिक भी अब तक उष्ण तेजोलेश्या अणुबम और उद्जन बम का ही प्राविष्कार कर पाये है पर अणु अस्त्रों का प्रतिकारक अस्त्र उन्हें अभी तक कोई नहीं मिला है। अणुबम और तेजोलेश्या के उक्त वर्णन का तात्पर्य यह नहीं कि वे दोनों शक्तियाँ सर्वांशतः एक ही हैं, किन्तु दोनों के ही विधि विधानों में जो यत्किञ्चित् साम्य है, वह अवश्य अनेकानेक सुषुप्त जिज्ञासाओं को उभारने वाला है। . निष्कर्ष दृष्टि .. जैन दर्शन ने अहिंसा, स्याद्वाद, कर्म, मुक्ति आदि अध्यात्मिक विषयों पर जिस प्रकार अपने अजोड़ विचार दिये ; भौतिक पदार्थ विज्ञान के विषय में भी वह अजोड़ ही रहा । अन्यान्य दर्शनों की तो बात ही क्या आधुनिक विज्ञान भी अपने क्रमिक विकास से तत्सम्बन्धी विभिन्न पहलुओं में इसका अनुसरण कर रहा है, यह बहुत प्रकार से स्पष्ट हो चुका है। बहुत सारे विज्ञाननिष्ठ विचारक इस विषय को इतने में ही टाल दिया करते हैं कि पुराने दार्शनिकों की परमाणु सम्बन्धी धारणा में और नवोदित विज्ञान की धारणा में कोई सामञ्जस्य नहीं है। दार्शनिकों के पास इस विषय का अल्पतम ज्ञान था। वही ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में विकसित होता हुमा आमूल ही बदल गया है। अतः दार्शनिकों का वह अल्पतम ज्ञान आज के युग में अपना अधिक महत्त्व नहीं रखता । सही स्थिति यह है कि प्राचीन अणु विज्ञान के अन्वेषण में ऐसे लोगों ने न तो समय लगाया है और न उन्होंने लगाना आवश्यक ही समझा है। वे तो सदा उसी बद्धमूल धारणा की परिक्रमा करते हैं कि प्राचीन काल में अणु-विज्ञान का जरा भी उदय नहीं था। इस दिशा में तटस्थ भावना से यदि पर्याप्त अन्वेषण हुआ तो उक्त बद्धमूल धारणा में एक मौलिक परिवर्तन निःसन्देह फलित होगा। जैन दर्शन का परमाणुवाद निश्चल व समग्र निरूपण-सा लगता है । सहस्रों वर्ष पूर्व प्रतिपादित विषय आज भी नया-सा लगता है। आधुनिक पदार्थ विज्ञान में आदि से लेकर अब तक नव नवोन्मेष होते रहे हैं । भविष्य में तथाप्रकार के नव उन्मेषों की सम्भावना और भी बढ़ती जा रही है । परमाणु और विश्व (Atom and १. भगवती शतक १५ ॥ २. भगवती शतक १५ । Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002599
Book TitleJain Darshan aur Adhunik Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1959
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy