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जैन दर्शन और प्राधुनिक विज्ञान
में हो जाते हैं और परमाणु टूटकर एलेक्ट्रोन, प्रोटोन व शक्ति रूप में परिणत हो जाते हैं; पर पदार्थ का श्रात्यन्तिक नाश कहीं नहीं है । पदार्थ शक्ति में जैसे बदलता है शक्ति भी पदार्थ में पुनः बदल जाती है । इसीलिए आधुनिक पदार्थ विज्ञान में 'पदार्थ की सुरक्षा का सिद्धान्त' और 'शक्ति की सुरक्षा का सिद्धान्त " ये दो विषय मूलभूत पहलू बन गये हैं ।
परिभाषा और लक्षण
दार्शनिकों ने पुद्गल की परिभाषा बताई - वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शवान् पुद्गल है । वर्ण चक्षुरिन्द्रियग्राह्य है, गन्ध घ्राणेन्द्रिय ग्राह्य है । इसी प्रकार रस और स्पर्श क्रमश रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय द्वारा ग्राह्य हैं । इसलिये हम ऐसा भी कह सकते हैं— जो इन्द्रियग्राह्य है वह पुद्गल है । पर पुद्गल इन्द्रिय ग्राह्य ही है ऐसी व्याप्ति नहीं बनती। क्योंकि वह प्रतीन्द्रिय भी है । कुछ भी हो दार्शनिकों की पुद्गल परिभाषा सर्वांगीण तथा समुचित है । वैज्ञानिकों ने पदार्थ की परिभाषा करते हुए बतायाजिसमें लम्बाई, चौड़ाई, मोटाई हो वह पदार्थ है । जैन परिभाषा की अपेक्षा से पदार्थ की यह परिभाषा अत्यन्त स्थूल है । परमाणु तो सर्वथा इस परिभाषा से बाहर ही रह जाते हैं ।
प्रण शक्ति और तेजोलेश्या
अणु शक्ति के दो विशेष उदाहरण एटमबम और हाइड्रोजनबम का वर्णन किया जा चुका है । दोनों प्रणु अस्त्र पूरण गलन धर्मत्वात् पुद्गलः' इस व्याख्या को परिपुष्ट करने वाले हैं। पूरण अर्थात् संयोग - मिलन, गलन अर्थात् वियोग | हाइड्रोजनवम पूरण धर्म का उदाहरण है । क्योंकि हाइड्रोजन के चार परमाणुत्रों के संयोग से हेलियम् का एक परमाणु बनता है । उस संयोग से जो कुछ भाग शक्ति रूप में परिणत होता है, वह हाइड्रोजन बम है । एटम बम यूरेनियम् के परमाणु समूह के टूटने से बनता है, इसलिए वह गलन अर्थात् वियोग धर्म का उदाहरण है । प्राधुनिक पदार्थ विज्ञान में भी उद्जनबम को फ्युजन बम कहा गया है, जिसका कि अर्थ हैमिलना और एटमबम को फीजन बम कहा गया है, जिसका कि अर्थ है पृथक् होना । शक्ति की गरिमा को व्यक्त करनेवाला शास्त्रीय उदाहरण तेजोलेश्या का है । तेजोलेश्या पौद्गलिक है और वह विस्तृत भाव को प्राप्त होकर अंग, बंग,
1. Principle of Conservation of matter. 2. Principle of Conservation of Energy. 3. Atoms and the Universe. p. 160.
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