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जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान स्कन्धों का एक होना व एक स्कन्ध का एक से अधिक परमाणुओं की इकाई में टूटने का परिणाम भी एक स्वतन्त्र स्कन्ध है ।
आधुनिक विज्ञान में भी स्कन्ध (Molecule) की गहरी चर्चा है, वहाँ बताया गया है—पदार्थ स्कन्धों से बने हुए हैं । वे स्कन्ध गैस आदि पदार्थों में तो बहुत तीव्र गति से सब दिशाओं में गति करते हैं । सिद्धान्ततः, स्कन्ध यह है कि एक चाक का टुकड़ा, जिसके दो टुकड़े किए जाएँ और दो के फिर चार इसी क्रम से असंख्य (Infinite) तक करते जाएँ; जब तक कि वह चाक चाक के रूप में रहे और उसका वह सूक्ष्मतम विभाग स्कन्ध कहलायेगा। स्थिति यह है, किसी भी पदार्थ के हम टुकड़े करते जायेंगे। एक रेखा ऐसी आयेगी जहाँ से वह पदार्थ अपनी मौलिकता खोए बिना नहीं टूट सकेगा । अतः उम पदार्थ का मूल रूप स्थिर रहते हुए जो उसका अन्तिम टुकड़ा है वह एक स्कन्ध है । जैन-दर्शन और आधुनिक विज्ञान की स्कन्ध व्याख्या में कुछ समानता है तो कुछ भेद भी । जैन दर्शन में पदार्थ की एक इकाई को एक स्कन्ध माना गया है, जैसे-घड़ा, चटाई, मेज, कलम, पुस्तक प्रादि । घड़े के यदि दो टुकड़े हो गये तो दो स्कन्ध, और सौ टुकड़े हो गये तो सौ स्कन्ध हैं। चाक के दो टुकड़े किये गये तो दो स्कन्ध, सहस्र टुकड़े किये गये तो सहस्र स्कन्ध । यदि उसको पीसकर चूर्ण कर लिया तो एक एक अणु (करण) एक-एक स्कन्ध है । आधुनिक विज्ञान में चाक का वह अणु ही केवल स्कन्ध है जिसे यदि फिर तोड़ा जाये तो वह अपने चाकपन को खोकर किसी अन्य पदार्थ जाति में परिणत हो जायेगा । जैन दृष्टि से चाक का वह अन्तिम अणु स्कन्ध है ही किन्तु पदार्थ स्वरूप के बदलने की अपेक्षा न रखते हुए जब तक वह तोड़ा जा सकता है अर्थात् जब तक एक परमाणु के रूप में नहीं पहुँच जाता तब तक वह स्कन्ध है, और उसके सहधर्मी जितने टुकड़े हैं, वे सब स्कन्ध हैं।
स्कन्ध-निर्माण परमाणुओं से स्कन्ध और स्कन्धों से वस्तु-निर्माण कैसे होता है, इसका संक्षिप्त फारमूला जैन-दर्शनकारों ने बताया है-अनेक परमाणु परस्पर मिल कर एक इकाई बनते हैं उसका हेतु उन परमाणुओं का स्निग्धत्व व रूक्षत्व स्वभाव है । रूक्ष परमाणु रूक्ष के साथ और स्निग्ध परमाणु स्निग्ध के साथ तीन से लेकर यावत् अनन्त गुणां शोंकी तरतमता से बन्धन प्राप्त होते हैं। स्निग्ध और रूक्ष परमाणु तो बिना किसी शर्त के बन्ध जाते हैं। एक गुण रूक्ष और एक गुण स्निध परमाणु कभी बन्धन को प्राप्त नहीं होते।' जैन-दर्शनकारों ने जैसे स्निग्धत्व और रूक्षत्व को बन्धन का कारण माना, वैज्ञानिकों ने पदार्थ के धन विद्युत् (Positive Charge) और ऋण विद्युत् (Negative Charge) इन दो स्वभावों को बन्धन का कारण माना । जैन दर्शन के
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