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________________ - स्याद्वाद और सापेक्षवाद हमारे मस्तिष्क में दूसरी रेखा की कोई कल्पना न होगी। इस स्थिति में अनिश्चितता नहीं किन्तु यथार्थता यह होगी कि रेखा बड़ी या छोटी है भी, नहीं भी ! यह तर्क एस० के० वेलबालकर के तर्क पर लागू होता है । S (एस) हो सकता है, S (एस) नहीं हो सकता है आदि विकल्पों को समझने के लिए क्या यह सर्वमान्य तथ्य नहीं होगा कि रेखा बड़ी भी है छोटी की अपेक्षा से, छोटी भी है बड़ी की अपेक्षा से । छोटी बड़ी दोनों ही नहीं है सम रेखा की अपेक्षा से । तथा प्रकार से 8 है अंग्रेजी भाषा की अपेक्षा से ; एस लुप्त प्रकार का चिन्ह है संस्कृत भाषा की दृष्टि से । दोनों हैं दोनों भाषाओं की अपेक्षा से, दोनों नहीं है अन्य भाषाओं की अपेक्षा से । स्याद्वाद कोई कल्पना की आकाशी उड़ान नहीं बल्कि जीवन व्यवहार का एक बद्धिगम्य सिद्धान्त है । लोगों ने 'है और नहीं भी' के रहस्य को न पकड़कर उसे सन्देहवाद या संशयवाद कह डाला, किन्तु चिन्तन की यथार्थ दिशा में आने के पश्चात वह इतना सत्य लगता है जैसे दो और दो चार । अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल व गुण (मान) की अपेक्षा से प्रत्येक पदार्थ है और परद्रव्य क्षेत्र आदि की अपेक्षा से प्रत्येक पदार्थ नहीं है, यही 'स्यादस्ति' और 'स्यान्नास्ति' का हार्द है। दही व भैंस एक हैं द्रव्यत्व की अपेक्षा से, एक नहीं है दधित्व व महिषत्व की अपेक्षा से । दही खाने का पदार्थ है दधित्व की अपेक्षा से, न कि द्रव्य होने मात्र से । इसलिए दही के साथ भैंस की बात जोड़ना मूर्खता है । , सापेक्षवाद की आलोचना का भी लम्बा इतिहास बन चुका है । यह सत्य है कि सापेक्षवाद आज वैज्ञानिक जगत् में गणितसिद्ध सर्वसम्मत सिद्धान्त बन गया है और यह माना जाने लगा है कि इस सदी का वह एक महान् आविष्कार और मानव मस्तिष्क की सबसे ऊंची पहुँच है', पर इसकी जटिलता को हृदयङ्गम न कर सकने के कारण प्रारम्भ में आलोचकों का क्या रुख रहा यह एक दिलचस्प विषय है। एक सप्रसिद्ध व अनुभवी इंजीनियर सिडने ए. रीव ने कहा है--"प्राईस्टीन का सिद्धान्त निरी ऊटपटांग बकवास है ।" दार्शनिक गगन हेमर ने लिखा- "प्राईस्टीन ने तर्क शास्त्र में एक मूर्खतापूर्ण मौलिक भूल की है ।" इस प्रकार स्याद्वाद की तरह 1. Relativity is probably the farthest reach that the human mind has made into the "Unknown". -- Exploring the Universe p. 257 2. 'Einstein theory is arrant non-sense'. -Cosmology Old and New p. 197 3. Einstein has made a very silly basic error in logic. - Cosmology Old and New p. 197 Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002599
Book TitleJain Darshan aur Adhunik Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1959
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Science
File Size7 MB
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