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बर्शन मोर विज्ञान
रूप में चला है । हमारा सत्य सदा असन्दिग्ध और एक रूप रहे इसलिए वैज्ञानिकों ने प्रयोग और अन्वेषणों को ही अपना प्रमाण माना । विज्ञान की परिभाषा में सत्य वही माना गया जिस पर प्रयोगशालाओं और वैघशालाओं की छाप लग गई हो; किन्तु सत्य को पा लेना उतना सहज नहीं था, जितना कि उन्होंने समझा था । विज्ञान का इतिहास उठाकर यदि हम एक तटस्थ अध्ययन करते है तो प्रति पृष्ठ पर वहाँ बदलते हुए निर्णय पाये जाते है । गति सहायक ईथर के विषय में न्यूटन प्रभृति प्राक्तन वैज्ञानिकों ने क्या कुछ माना, अब तक कितने प्रयोगों के आधार पर कितने नये निर्णय आए और आज प्रो० अलबर्ट आइंस्टीन ने किस प्रकार इसे अस्तित्व शून्य-सा कर दिया है। परमाणु के विषय में डेमोक्रेट्स से लेकर अणु बम व उदजन बम तक के इस युग में कितने नवीन निर्णयों की एक शृङ्खला बनी है। परमाणु का इतिहास केवल क्रमिक विकास
का ही द्योतक नहीं है। विभिन्न निर्णयों के उथल पुथल की वह एक ग्रन्थिमाला भी 'है । उसे यदि हम क्रमिक विकास का प्रतीक भी मानें तो भी यह प्रश्न तो हमेशा ही सामने रहेगा--कल का सत्य यदि आज बदल गया तो आज का सत्य क्या कल तक ठहर सकेगा? सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी तथा अन्य ग्रह-गरणों की गति, स्थिति और स्वरूप के विषय में टोलमी के युग की बात कोपरनिकस के युग में नहीं रही और कोपरनिकस के निर्णयों पर आईस्टीन का सापेक्षवाद एक नया रूप लेकर आ धमकता है। क्या हम सोचें इस सम्बन्ध में प्राईस्टीन के निर्णय अन्तिम हैं ?
न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण (Law of Gravitation) का आविष्कार किया। उन दिनों पृथ्वी गोल है और सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है, यह सिद्धान्त अपनी प्रारम्भिक स्थिति में था। इस नये सिद्धान्त के साथ नाना नये प्रश्न पैदा हो रहे थे—यदि पृथ्वी गोल है तो उस पर हिन्द महासागर जैसे समुद्र कैसे स्थिर रहते हैं ? उनका पानी अनन्त आकाश में क्यों नहीं बह जाता ? पृथ्वी नियमित रूप से अपनी कक्षा में क्यों चलती है ? चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर क्यों चक्कर लगा रहा है ? और भी नाना ग्रह, उपग्रह सूर्य के चारों ओर क्यों घूमते हैं ? उन सब की गति निश्चित क्रम से क्यों होती है ? आदि अनेकों प्रश्न खड़े थे। इसी उधेड़-बुन में सूक्ष्म विचारक न्यूटन अपने उद्यान में एक दिन बैठा था। उसके देखते देखते सेम का फल वृक्ष से टूटा और पृथ्वी पर आ पड़ा । सहसा उसके मन में प्रश्न आया, यह फल नीचे ही क्यों गिरा ? ऊपर क्यों नहीं चला गया ? उसने समाधान निकाला पृथ्वी में आकर्षण है । यही विचार आगे बढ़ा और उसने सुप्रसिद्ध गुरुत्वाकर्षण का रूप लिया। अब तो न्यटन को पृथ्वी में ही नहीं पृथ्वी के अणु अणु में और अन्य ग्रह-पिण्डों में सर्वत्र आकर्षण ही आकर्षण दीखने लगा। पृथ्वी व अन्य ग्रहों सम्बन्धी नई धारणा के जितने प्रश्न अवशेष रह रहे थे; न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त से हल किए।
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