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________________ ४६६ सिरिपउमप्पहसामिचरियं भणइ पिए सवमेयं, निज्जइ लोएण जीवंतं ।। ९९४ ।। कह जाणसि त्ति पुढे पभणइ वाइत्तसद्दभेएणं ।।। जाणामि धुवं एसा, सविसा कढिज्जए कन्ना ।। ९९५ ।। जीवावसु त्ति तीए, भणिए गंतुं चियाए पासम्मि ॥ वारइ करुणपलावे, निरिक्खए तं सवं सम्मं ॥ ९९६ ।। सचिवमुहेण वियाणइ, जह एसा कक्कराइणो धूया ॥ लीलावइ त्ति अहिणा दट्ठा मुक्का नरिंदेहिं ।। ९९७ ।।' आलिहिय मंडलं तं, तत्थ निवेसित्तु सरिय नियमंतं ॥ जंपइ उट्ठसु वियरसु, जणणीए दंतवरकटुं ।। ९९८ ।। उद्वित्तु तओ एसा, सहसा गिण्हित्तु कणयकरगाई ।। वियरेइ दंतकटुं, जणमणहरिसं पयच्छंती ।। ९९९ ।। अह ताडावइ तुट्ठो, मंगलतूराणि कक्कराया सो।। वारावइ सो कुमरो, अज्जवि सविसा इमा अस्थि ।। १००० किं पुण दंसियमेयं, पढमं तुम्हाण मंतसामत्थं ।। एवमवरत्थविसए, संका मणवसणहरणाई ॥ १००१ ।। काऊण तत्थ खेड् विसरहिया तेण निम्मिया एसा ।। जाओ हरिसो सहसा, तत्तो रायाइलोयाणं ।। १००२ ।। परिभाविऊण हियए, दिन्ना तस्सेव राइणा एसा ।। वीवाहिऊण एयं, तह गिण्हिय सो पुरो जाइ ।। १००३ ।। उज्जेणीए पत्तो, सुवण्णजाले सरस्स पासम्मि । संज्झा समए पिच्छइ, जलंतमेगं चियं एसो ।। १००४ ।। पासनिविट्ठा पुरिसा, तेण य पुट्ठा कहति जह एसा ।। धूया अवंतिसुंदरि, नामा रनो जियारिस्स ।। १००५ ।। उप्फेरएण सहसा अज्ज मया एत्थ डज्झए तत्तो ।। कुरुचंदो तं जाणइ, जालाभेएण जीवंति ।। १००६ ।। नियदइयाण वि अ कहियवत्तो गहिऊण खग्गमंतरिओ। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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